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योग: तनाव की दुनिया में आंतरिक शांति की खोज | योग क्या है | योग के प्रकार | benefits of yoga | yoga meaning | yoga steps | 12 योगासन | yoga for seniors

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      आज की तेजी से बदलती और मांगदार दुनिया में, आंतरिक शांति और सुकून पाना एक चुनौती हो सकती है। जब योग की लोकप्रियता बढ़ रही है, यह महत्वपूर्ण है कि इसके प्रारंभिकता के लिए प्रदान करने वाले लाभों को समझा जाए। हालांकि, योग एक सुंदर पथ प्रदान करता है जिससे अशांति के बीच शांति और संतुलन का अहसास होता है। यदि आप योग के नए हैं और जीवन के तनावों को संचालित करने का तरीका ढ़ूंढ़ रहे हैं, तो यह ब्लॉग सही आरंभिक बिंदु है। हमारे साथ जुड़ें और स्व-खोज के एक सफर पर चलें जब हम योग की परिवर्तनशील शक्ति और यह कैसे आपके जीवन में शांति लाने में सहारा कर सकता है, इसे अन्वेषण करते हैं। योग से प्राप्त होने वाले लाभ: मानसिक और शारीरिक स्वस्थता   योग एक प्राचीन अभ्यास है जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कई लाभ प्रदान करता है। योग को नियमित रूप से अभ्यास करने से लचीलाई, संतुलन, शक्ति, और समग्र शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकती है। योग आराम प्रोत्साहित करता है, तनाव स्तर को कम करता है, और चिंता और डिप्रेशन का प्रबंधन करने में मदद करता है। इसे शरीर में सूजन को कम करने के लिए दिखाया ग...

योग चिकित्सा का अर्थ, परिभाषा और सिद्धांत

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 स्वस्थ व्यक्तियों के लिए योगाभ्यास स्वास्थ्य की परिभाषा ये कहती है कि शरीर स्वस्थ्य, मन प्रसन्न इन्द्रियां नियत्रित एवं सभी दोष धातुएं, मल व अग्नि समभाव में हो। जिनका शरीर व्याधियों से पीड़ित नहीं है केवल इतना ही स्वस्थ नहीं है। आधुनिक युग में विश्व स्वास्थ्य संगठन भी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य को ही पूर्ण स्वासय मानता है। इस तरह देखा जाए तो पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करना कठिन है। परन्तु इस ओर प्रयास किया जा सकता है। योग अभ्यास की कुछ चुनी हुई प्रक्रिया यदि नियमित रूप से अपनायी जाए तो इस ओर सफतला पाई जा सकती है। जिनका शरीर स्वस्थ है उन्हें मानसिक, भावनात्मक, संतुलन एवं आध्यात्मिक उत्थान हेतु प्रयास करने चाहिए, साथ ही यह प्रयास भी होना चाहिए कि यह स्वास्थ्य संतुलित रहे, किसी प्रकार की बीमारी न आने पाये। इस क्रम में निम्नलिखित योगाभ्यास करने चाहिए- आसन संधि संचालन के अभ्यास (श्वास-प्रश्वास के तालमेल के साथ), ताड़ासन, तिर्यक तड़ासन, कटि चक्रासन, (5-5 चक्र), सूर्य नमस्कार (5 चक्र), श्वासन 15 मिनट । हलासन, पश्चिमोत्तानासन, धनुरासन, पद्मासन सिद्धासन्, अर्धम...

याज्ञवल्क्य ऋषि की कहानी

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 महर्षि याज्ञवल्क्य जी का नाम एक महान अध्यात्मवेत्ता, योगी, ज्ञानी, धर्मात्मा, श्रीरामकथा के प्रवक्ता के रूप में सबने सुना है। इनका नाम ऋषि परम्परा में बड़े आदर के साथ लिया जाता हैं। पुराणों में इन्हें ब्रह्मा जी का अवतार बताया गया है ( श्रीमदभा. 12/6/64 )। ये वेदाचार्य महर्षि वैशम्पायन के शिष्य थे। इन्होंने अपने गुरू वैशम्पायन जी से वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। एक मान्यता के अनुसार एक बार गुरू से कुछ विवाद हो जाने के कारण गुरू वैशम्पायन जी इनसे रूष्ट हो गये और कहने लगे कि तुम मेरे द्वारा पढ़ाई गई यजुर्वेद को वमन कर दो। गुरूजी की आज्ञा पाकर याज्ञवल्क्य जी ने अन्नरूप में वे सब ऋचाएं वमन कर दी जिन्हें वैशम्पायन जी के दूसरे शिष्यों ने तीतर, बनकर ग्रहण कर लिया। यजुर्वेद की वही शाखा जो तीतर बनकर ग्रहण की गयी तैतरीय शाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसके पश्चात् याज्ञवल्क्य जी एक अन्य गुरूकुल में गये वहां पर विद्याध्ययन करने लगे ये बहुत ही कुशाग्र बुद्धि थे। इनकी सीखने की प्रवृत्ति भी तीव्र थी। ये स्वाभिमानी स्वभाव के थे। यहां भी किसी बात को लेकर गुरू के साथ इनका विवाद हो गया और इन्होंने सोचा...

वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश की विधि कलयुग के परिपेक्ष में

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    ब्राह्मण जो जन्म से है तथा उचित समय से यज्ञोपवीत संस्कार हुआ है तथा वे ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ तथा सन्यास चारो आश्रम के अधिकृत हैं। यह सामान्य नियम है। ब्राह्मण के ऊपर बहुत दायित्व होता है वे विश्व को स्वस्थ मार्गदर्शन देने में ईश्वर द्वारा अधिकृत माने गए हैं। कालक्रम से विलुप्त ज्ञान विज्ञान को तपोवल से उद्भाषित करना विकृत ज्ञान विज्ञान को विशुद्ध करना  श्रूत्रात्मक ज्ञान को विषद करना उनका मुख्य दायित्व होता है तथा यह सब दायित्व वह तभी कर सकता है जब उनके सभी जीवन त्याग और ताप से मन्डित और भूषण हो ।      जो क्षत्रिय है परंपरा से राजकुल में उत्पन्न है समय पर यज्ञोपवीत संस्कार से संपन्न है तदनुकूल जीवन भी है वह ब्रह्मचर्य गृहस्थ वानप्रस्थ तीन आश्रमों तक अधिकृत माने गए हैं सन्यास आश्रम का मुख्य विधान इसलिए नहीं है कि क्योंकि क्षत्रिय को राष्ट्र की रक्षा को संतुलित करने का दायित्व रहता है। वैश्य गौरक्ष,कृषि,वाणिज्य तीनों में अधिकृत है दक्षता प्राप्त कर आर्थिक दृष्टि से राष्ट्र को सम्मोउन्नती करना उनका दायित्व है तथा ब्रह्मचर्य और गृहस्थ आश्रम तक...

कुंडलिनी जागरण: ध्यान, प्राणायाम, और आसन की महत्वपूर्णता

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कुंडलिनी जागरण एक गहरा योगिक प्रक्रिया है जो शरीर की ऊर्जा को जागरूक करती है। इस प्रक्रिया में ध्यान, प्राणायाम, और आसन का बहुत महत्व होता है। ध्यान करने से मन को शांति मिलती है और व्यक्ति अपने अंतरंग अनुभवों को जानता है। प्राणायाम करने से शरीर की ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सकता है और श्वसन द्वारा शरीर को ऊर्जा मिलती है। आसन करने से शरीर की ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सकता है और शरीर के अंगों को फिट रखा जा सकता है। इसलिए, कुंडलिनी जागरण के लिए ध्यान, प्राणायाम, और आसन का बहुत महत्व होता है। इन तकनीकों के माध्यम से शरीर की ऊर्जा को जागरूक किया जा सकता है और इस प्रक्रिया को सफल बनाने में मदद मिलती है। कुंडलिनी जागरण क्या होता है और इसे कैसे जगाया जा सकता है? कुंडलिनी जागरण एक प्राचीन योगिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर की ऊर्जा को जागरूक किया जाता है और उसे ऊपरी चक्रों में ले जाया जाता है। इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य मानव के अंतर्मन की ऊर्जा को जागरूक करना और उसे उच्च स्तर की चेतना तक पहुंचाना होता है। कुंडलिनी जागरण को जगाने के लिए विभिन्न योगिक तकनीकें और प्राणायाम का उपयोग किया जाता ह...

महावीर स्वामी का जीवन और उपदेश

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        महावीर का जन्म ५९९ ई० पू० में हुआ था। वे बहत्तर वर्षों तक जीवित रहे । ५६९ ई॰ पू॰ में उन्होंने गृह-त्याग किया। उन्होंने ५५७ ई० पू० में सर्वज्ञता प्राप्त की तथा ५२७ ई० पू० में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। वे अन्तिम तीर्थंकर थे ।        महावीर का जीवन सत्यवादिता, आर्जव तथा पवित्रता से ओत-प्रोत था। उनमें ये गुण आत्यन्तिक रूप में विद्यमान थे। वे आजीवन अकिंचन बन कर रहे ।        महारानी त्रिशला तथा कुण्डलपुर के महाराज सिद्धार्थ उनके माता-पिता थे । त्रिशला को प्रियकर्णी के नाम से भी जाना जाता है। 'महा' का अर्थ महान् तथा 'वीर' का अर्थ उदात्त नायक होता है। तीर्थ का शाब्दिक अर्थ होता है घाट जो पार उतरने का साधन है । इस शब्द में निहित लाक्षणिकता के अनुसार इसका तात्पर्य पथ-प्रदर्शक या उस दर्शन से है जो किसी को जन्म-मरण के आवर्तन के महोदधि को पार करने की क्षमता प्रदान करता है । 'कर' का अर्थ कर्ता होता है। 'तीर्थ' तथा 'कर' इन दोनों शब्दों का समवेत अर्थ पवित्र जैन अर्हत होता है।             महा...