पार्श्वनाथ जीवनी तथा कर्म दर्शन के सबसे पहले प्रतिपादक | पार्श्वनाथ भगवान प्रश्नोत्तरी | 2024
पार्श्वनाथ जी को इन्द्र का अवतार माना जाता है वे काशी नरेश इक्ष्वाकुवंशीय महाराज विश्वसेन के पुत्र थे। उनकी माता का नाम वामादेवी था जो महाराजा महिपाल की पुत्री थीं। वे तेईसवें तीर्थंकर थे। उनका जन्म ८७२ ई. पू. में पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को हुआ था।
पार्श्वनाथ ने आठ वर्ष की आयु से ही गृहस्थाश्रम के द्वादश व्रतों का अनुपालन प्रारम्भ कर दिया था।
पारसनाथ भगवान का जीवन चरित्र
पार्श्वनाथ सोलह वर्ष की आयु में सिंहासनारूढ़ हो चुके थे। एक दिन उनके पिता विश्वसेन ने उनसे कहा- "हे पुत्र अपने यशस्वी राजवंश की सन्तति-परम्परा को अविच्छिन्न रखने के लिए तुम्हारा विवाह अत्यावश्यक है। राजा नाभि के इच्छानुसार ऋषभ को भी विवाह करना पड़ा था।"
अपने पिता के इन शब्दों से पार्श्वनाथ अत्यन्त भयभीत हो उठे। उन्होंने कहा- "मैं ऋषभ की भाँति दीर्घजीवी नहीं हो सकूँगा मुझे कुछ ही वर्षों तक जीवित रहना है। मैंने अपने जीवन के सोलह वर्ष बाल-सुलभ क्रीड़ाओं में व्यर्थ ही गँवा दिये। तीस वर्ष की आयु में मेरा दीक्षा ग्रहण अनिवार्य है। तब क्या मैं अपूर्ण, अनित्य तथा मायिक सुखों के प्राप्त्यर्थ अल्पावधि के लिए विवाह कर लूँ ?”
पार्श्वनाथ के हृदय में वैराग्य जाग्रत हो उठा। उन्होंने मन-ही-मन विचार किया—“मैंने दीर्घ काल तक इन्द्र के पद का उपभोग किया है, फिर भी सुख के प्रति मेरी तृष्णा का क्षय नहीं हो पाया। जिस प्रकार ईंधन के आधिक्य के अग्नि की ज्वाला का शमन नहीं होता, उसी प्रकार सुखोपभोग से सुख की तृष्णा में वृद्धि ही होती है। उपभोग के समय सुख रुचिकर प्रतीत होते हैं, किन्तु उनके परिणाम निश्चित रूप से अनर्थकारी होते हैं।
" सांसारिक विषयों के प्रति आसक्ति के कारण यह जीव अनादि काल से जन्म,जरा आदि के दुःखों का अनुभव करता आ रहा है। इन्द्रिय-लोलुपता की सन्तुष्टि के लिए वह दुःख के संसार में भ्रमण करता रहता है। वैषयिक तुष्टि के लिए वह नैतिक विधि-निषेध की ओर ध्यान नहीं देता और इस प्रकार जघन्य पापों में लिप्त हो जाता है। ऐन्द्रिय सुखों की प्राप्ति के लिए वह पशु-हत्या करता है। चोरी,लोभ, पर-स्त्री-गमन तथा सभी प्रकार के पापों और अपराधों के मूल में तृष्णा हो विद्यमान है।
"पाप कर्म के परिणाम स्वरूप जीव जन्म-मरण के चक्र में आवद्ध हो जाता है। इसके फल-स्वरूप उसे निम्नतर पशु-योनि में अवतरित होना तथा नरक की यातना का भोग करना पड़ता है। सुख की इस तृष्णा का निर्मम उच्छेद अत्यावश्यक है। मैंने अब तक अपना जीवन व्यर्थ ही गँवाया; किन्तु अब मैं सुखों की अर्थहीन खोज में और अधिक संलग्न न रह कर गम्भीरतापूर्वक सम्यक् आचरण का अभ्यास करूँगा।"
राजकुमार पार्श्वनाथ अनुप्रेक्षा की द्वादश विधाओं से परिचित थे। उन्होंने संसार त्याग का निश्चय कर लिया। अपने माता-पिता की आज्ञा प्राप्त कर वे घर से निकल पड़े । गृह-त्याग के पश्चात् वे वन में चले गये। वहाँ वे पूर्णतः निर्वस्त्र हो गये। उत्तर की ओर जा कर उन्होंने मुक्ति प्राप्त महान् सिद्धों को नमन किया और शिर के केश के पाँच गुच्छों को लुंचित कर वे मुनि या जिन बन गये ।
पार्श्वनाथ ने उपवास का अभ्यास किया। उन्होंने अवधान तथा निष्ठा के साथ अर्हत संघ के अट्ठाईस प्रारम्भिक तथा चौरानबे माध्यमिक व्रतों का अनुपालन किया। ध्यानावस्था में वे आत्म-विस्मृत हो जाते थे। वे विशुद्ध सर्वज्ञता की स्थिति को प्राप्त हो चुके थे। उन्हें सामेदा की पहाड़ी पर आत्यन्तिक मुक्ति की प्राप्ति हुई। आजकल इस पहाड़ी को पार्श्वनाथ की पहाड़ी कहते हैं ।
पार्श्वनाथ ने काशी, कोसी, कोशल, पांचाल, महाराष्ट्र, मगध, अवन्ती, मालवा, अंग तथा वंग में उपदेश दिये। अनेक व्यक्ति जैन-धर्म में दीक्षित हो गये। पार्श्वनाथ ने अपने जीवन के सत्तर वर्ष उपदेश देने में व्यतीत किये।
महावीर ने पार्श्वनाथ की शिक्षाओं को संशोधित संवर्धित किया। उनके उपदेशों में ऐसा कुछ भी न था जिसे सर्वथा नवीन कहा जा सके ।
पार्श्वनाथ एक सौ वर्ष तक जीवित रहे। ८४२ ई० पू० में तीस वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग किया और ७७२ • पू० में उन्हें निर्वाण की प्राप्ति हुई।
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ महिमान्वित हों !
भगवान पार्श्वनाथ चालीसा
संपूर्ण पार्श्वनाथ भगवान प्रश्नोत्तरी
(प्रथम भव) प्रश्न 1 - भगवान पार्श्वनाथ दस भव पूर्व कौन सी पर्याय में थे?
उत्तर - भगवान पार्श्वनाथ दस भव पूर्व मरुभूति की पर्याय में थे।
प्रश्न 2 - मरुभूति कौन था?
उत्तर - मरुभूति राजा अरविन्द का मंत्री था।
प्रश्न 3 - राजा अरविन्द कहाँ के राजा थे?
उत्तर - राजा अरविन्द पोदनपुर के राजा थे।
प्रश्न 4 - मरुभूति को मंत्री पद की प्राप्ति कैसे हुई?
उत्तर - मरुभूति के पिता ब्राह्मण विश्वभूति पोदनपुर नरेश महाराजा अरविन्द के मंत्री थे, एक बार उन्हें संसार से वैराग्य हो गया और वह महाराजा अरविन्द से आज्ञा ले दीक्षा के लिए तत्पर हुए तब अरविंद महाराज ने परम्परा से आगत मंत्री पद उनके दोनों पुत्रों कमठ एवं मरुभूति को प्रदान किया।
प्रश्न 5 - क्या राजा से प्राप्त मंत्री पद को कमठ एवं मरुभूति दोनों ने उचित रूप से निर्वहन किया?
उत्तर - नहीं, कमठ अत्यन्त कुटिल परिणामी दुष्टात्मा था और मरुभूति अतिशय सरल स्वभावी धर्मात्मा था। मंत्री कमठ समय पाकरनिरंकुश हो गया और सर्वत्र अन्याय का साम्राज्य फैला दिया जबकि मरुभूति ने उचित रूप से मंत्री पद का निर्वहन किया।
प्रश्न 6 - कमठ ने कौन सा ऐसा दुस्साहसिक कार्य किया जिससे उसे देश निकाला दिया गया?
उत्तर - कमठ ने अपने छोटे भाई मरुभूति की पत्नी के साथ व्यभिचार किया जिसके फलस्वरूप राजा की आज्ञा से उसका सिर मुंडवाकर मुख पर कालिख पोतकर गधे पर बैठाकर सारे नगर में घुमाया गया और देश निकाला दे दिया।
प्रश्न 7 - इस अपमान को सहन करता हुआ कमठ कहाँ गया?
उत्तर - इस अपमान की अग्नि से झुलसा हुआ कमठ भूताचल पर्वत पर तापसियों के आश्रम में पहुँचा और उनके प्रमुख गुरु से दीक्षा ले तापसी बन पत्थर की शिला हाथ में लेकर तपस्या करने लगा।
प्रश्न 8 - पंचाग्नि तप किसे कहते हैं?
उत्तर - चारों तरफ अग्नि जलाकर और वृक्ष पर छीकें में बैठ जाना तथा नीचे भी अग्नि जला लेना पंचाग्नि तप है।
प्रश्न 9 - क्या मरुभूति भाई के इस निन्दनीय कार्य के कारण उसे क्षमा कर सका?
उत्तर - सरल स्वभावी मरुभूति ने न सिर्फ भाई को क्षमा ही प्रदान की अपितु भाई से मिलने व वापस घर लाने की उत्कण्ठा से तापसी आश्रम में जाकर भाई से विनयपूर्वक लौटने की प्रार्थना भी की।
प्रश्न 10-मरुभूति की प्रार्थना को स्वीकार कर क्या कमठ वापस घर आ गया?
उत्तर - जब मरुभूति ने कमठ से प्रार्थना की तब वह वापस घर न आकर अत्यन्त क्रोधित हो उठा और क्रोधवश पत्थर की शिला भाई मरुभूति के सिर पर पटक दी जिससे मरुभूति की वहीं तत्काल मृत्यु हो गयी।
प्रश्न 11- इस कुकृत्य को करने के बाद कमठ का क्या हुआ?
उत्तर - इस कुकृत्य के फल से प्रमुख तापसी गुरु ने उसकी बार-बार निन्दा करते हुए आश्रम से निकाल दिया।
प्रश्न 12-आश्रम से निकलकर वह कहाँ गया?
उत्तर - आश्रम से निकलकर वह पापी वन में पहुँचकर भीलों से मिलकर चोरी, डकैती आदि करने लगा।
प्रश्न 13- मरुभूति कहाँ गया?
उत्तर - मरुभूति भाई के मोहवश मरकर अतिसघन सल्लकी नामक वन में वज्रघोष नाम का विशालकाय हाथी हो गया।
(दूसरा भव) प्रश्न 1 - सल्लकी वन में कौन से मुनिराज का संघ ठहरा था?
उत्तर - उस वन में आचार्यश्री अरविन्द मुनि का विशाल संघ ठहरा था।
प्रश्न 2 - मरुभूति के जीव वज्रघोष हाथी ने उन मुनियों को देखकर क्या किया?
उत्तर - वज्रघोष हाथी विशाल संघ में क्षोभ उत्पन्न करता हुआ विचरण करने लगा और सारे संघ में खलबली मचा दी।
प्रश्न 3 - उसे किस प्रकार शांत किया गया?
उत्तर - वह मतवाला हाथी अपने कपोलों से मदजल को बरसाता हुआ जब मुनिराज अरविन्द के सम्मुख पहुँचा तब सुमेरु के समान अचल मुनि के वक्षःस्थल में श्रीवत्स का चिन्ह देखकर उसे जातिस्मरण हो गया और वह शांत हो गया।
प्रश्न 4 - गजराज के शांत हो जाने पर मुनिराज ने क्या किया?
उत्तर - गजराज के शांत हो जाने पर मुनिराज ने उसे पूर्वजन्म की सारी बातें याद दिलाते हुए संसार की असारता का बोध करा दिया और सम्यक्त्व ग्रहण करा दिया।
प्रश्न 5 - अरविन्द मुनि कौन थे?
उत्तर - अरविन्द मुनि पोदनपुर के राजा अरविन्द ही थे जिन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया और उन्होंने दीक्षा ले ली।
प्रश्न 6 - उनके वैराग्य का क्या कारण था?
उत्तर - एक बार राजा अरविन्द अपने महल की छत पर बैठे हुए प्राकृतिक छटा को देख रहे थे तभी मेघ पटल से निर्मित एक सुन्दर मंदिर (उन्नत शिखर युक्त) दिखाई दिया। राजा ने सोचा कि ऐसा सुन्दर मंदिर तो बनवाना चाहिए और चित्र खींचने को कागज-कलम उठाया तभी वह सुन्दर भवन विघटित हो गया, यह देख उन्हें संसार की स्थिति का सच्चा ज्ञान हो गया और राज्यभार पुत्र को सौंपकर उन्होंने गुरु के पास जाकर जैनेश्वरी दीक्षा ले ली।
प्रश्न 7 - अरविन्द मुनि किस नगर की ओर विहार कर रहे थे?
उत्तर - अरविन्द मुनि संघ सहित सम्मेदशिखर महातीर्थ की वंदना हेतु जा रहे थे।
प्रश्न 8 - सम्मेदशिखर की वन्दना करने से क्या फल मिलता है?
उत्तर - सम्मेदशिखर की एक भी वंदना करने वाले जीव भव्य ही होते हैं, उन्हें नरक गति व तिर्यंचगति नहीं मिलती है, यहाँ तक कि 49 भव के भीतर वे मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।
प्रश्न 9 - मोक्षमहल में चढ़ने के लिए प्रथम सीढ़ी क्या है?
उत्तर - सम्यग्दर्शन।
प्रश्न 10 - सम्यग्दर्शन की क्या परिभाषा है?
उत्तर - सच्चे देव, शास्त्र, गुरु पर दृढ़ श्रद्धान करना, इनके सिवाय रागद्वेषादि मल से मलिन ऐसे देव को, दयारहित धर्म को और पाखंडी साधुओं को नहीं मानना ही सम्यग्दर्शन है।
प्रश्न 11- पंच अणुव्रत किसे कहते हैं?
उत्तर - हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील एवं परिग्रह इन 5 पापों का एकदेश त्याग करना पांच अणुव्रत है।
प्रश्न 12- सात शील के नाम बताइये?
उत्तर -3 गुणव्रत एवं 4 शिक्षाव्रत ये सात शील हैं।
प्रश्न 13- किस आयु के बंध जाने पर यह जीव अणुव्रत और महाव्रत को ग्रहण नहीं कर सकता है?
उत्तर - देवायु के सिवाय अन्य आयु के बंध जाने पर।
प्रश्न 14-अणुव्रती एवं महाव्रती को किस गति का बंध नहीं होता है?
उत्तर - जो अणुव्रती या महाव्रती है वह नियम से देवगति में ही जावेगा अन्यत्र तीन गति में जा नहीं सकता अथवा कदाचित् महाव्रती महामुनि है तो मोक्ष भी जा सकता है।
प्रश्न 15- मुनिराज से सम्यक्त्व ग्रहण करने के बाद क्या हाथी ने उसका पालन किया?
उत्तर - मुनिराज से सम्यक्त्व ग्रहण करने के बाद गजराज ने उसका विधिवत् पालन करते हुए सभी के प्रति पूर्ण क्षमा रखी और पांच अणुव्रतों एवं सात शीलों का विधिवत् पालन करते हुए संयमासंयम को साधा।
प्रश्न 16-कीचड़ में फंस जाने पर हाथी ने क्या चिन्तवन किया?
उत्तर - कीचड़ में फंस जाने पर उस गजपति (श्रावक) ने सोचा- अब मुझे इस अथाह कीचड़ से कोई निकालने वाला नहीं है जैसे कि मोहरूपी कीचड़ में फंसे हुए संसारी जीव को इस संसाररूपी अथाह समुद्र से निकालने वाला कोई नहीं है। हाँ, यदि मैं सल्लेखनारूपी बंधु का सहारा ले लूँ तो वह मुझे अवश्य ही यहाँ से निकालकर उत्तम देवगति में पहुँचा सकता है।
प्रश्न 17-हाथी ने किस प्रकार की सल्लेखना ग्रहण की?
उत्तर - हाथी ने चतुराहार का जीवन भर के लिए त्याग करके महामंत्र का स्मरण करते हुए पंच परमेष्ठी का ही अवलम्बन ले लिया।
प्रश्न 18-उसकी मृत्यु किस प्रकार हुई?
उत्तर - कुछ समय पूर्व एक कुक्कुट जाति का सांप वहाँ आया और पूर्व जन्म के संस्कारवश उस हाथी को डस लिया। वेदना से व्याकुल हाथी ने गुरु द्वारा प्राप्त उपदेश का चिन्तवन करते हुए धर्मध्यानपूर्वक इस नश्वर देह का त्याग किया।
प्रश्न 19 - हाथी ने किस गति की प्राप्ति की?
उत्तर - हाथी बारहवें स्वर्ग में स्वयंप्रभ विमान में 'शशिप्रभ' नाम का देव हुआ।
प्रश्न 20- कुक्कुट सर्प कौन था?
उत्तर - कुक्कुट सर्प कमठ का जीव था।
(तीसरा भव) प्रश्न 1 - देवों को जन्म से कितने ज्ञान होते हैं?
उत्तर - देवों को जन्म से मति, श्रुत व अवधि, ऐसे तीन ज्ञान होते हैं।
प्रश्न 2 - स्वयंप्रभ विमान में जन्में शशिप्रभ देव ने सर्वप्रथम क्या किया?
उत्तर - देव ने सर्वप्रथम मंगल स्नान कर वस्त्रालंकारों से सुसज्जित हो जिनप्रतिमाओं की पूजा की।
प्रश्न 3 - उस देव की आयु कितनी थी?
उत्तर - 16 सागर।
प्रश्न 4 - शशिप्रभ देव की आहार प्रक्रिया बताइये?
उत्तर - शशिप्रभ देव का अनुपम मानसिक आहार था, सोलह हजार वर्ष के व्यतीत होने पर भोजन की इच्छा होती थी और उसी समय कंठ से अमृत झर जाता था जिससे उसकी तृप्ति हो जाती थी।
प्रश्न 5 - उसकी श्वासोच्छ्वास प्रक्रिया क्या थी?
उत्तर - सोलह पक्ष (8 महीना) बीतने के बाद वह देव श्वासोच्छ्वास ग्रहण करता था।
प्रश्न 6 - उसका अवधिज्ञान कहाँ तक था?
उत्तर - चतुर्थ नरक पर्यंत उसका अवधिज्ञान था।
प्रश्न 7 - उस देव की कितनी ऋद्धियाँ थीं?
उत्तर - उस देव की अणिमा, महिमा आदि आठ ऋद्धियाँ थीं।
प्रश्न 8 - देव शशिप्रभ की नित्य चर्या क्या थी?
उत्तर - कभी वह देव सुदर्शन मेरु पर जाकर सोलह चैत्यालयों की वंदना करता था, कभी वह नंदीश्वर द्वीप में बावन चैत्यालयों में पूजा करता था, कभी तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों के अवसर पर भक्तिभाव से भाग लेता था, कभी चारणऋद्धिधारी मुनियों की वंदना करके उनसे उपदेश सुनता था, कभी अपने सच्चे गुरु अरविन्द मुनिराज की पूजा करता था, कभी यहाँ मध्यलोक में आकर सम्मेदशिखर की वंदना कर असीम पुण्य का संचय करता था। कभी देवांगनाओं के साथ क्रीड़ा, तो कभी नंदनवन में विचरण करते हुए अपूर्व पुण्य के फल का उपभोग करता था।
प्रश्न 9 - कमठ का जीव कुक्कुट सर्प मरकर कहाँ गया?
उत्तर - कुक्कुट सर्प अपनी आयु पूर्ण करके रौद्रध्यान रूप अशुभ परिणामों से मरा और पांचवें नरक में गया।
प्रश्न 10-क्या नरक में मात्र दुःख ही दुःख है या कोई सुख भी है?
उत्तर - नरक में इतना असह्य दुःख है कि वहाँ के दुःखों का वर्णन यदि करोड़ों जिह्वा बनाकर भी सरस्वती देवी करने लगे तो भी वह असमर्थ हो जावेगी। वहाँ सुख लेशमात्र भी नहीं है।
प्रश्न 11-क्या नारकी जीवों का जन्म देवों की भांति उपपाद शैय्या पर होता है?
उत्तर - नहीं, नारकी जीव जन्म लेते ही अधोमुख गिरते ही उछलता है और पुनः गिरता है, उस समय वहाँ की पृथ्वी का स्पर्श भी इतना भयंकर होता है कि मानो हजारों बिच्छुओं ने एक साथ ही डंक मार दिया हो।
प्रश्न 12-नरक की मिट्टी कैसी है?
उत्तर - नरक की दुर्गन्धित मिट्टी यदि यहाँ आ जाए तो कई कोसों तक जीव मर जावें।
प्रश्न 13-उस नारकी जीव की आयु कितने सागर प्रमाण है?
उत्तर - वहाँ इसकी आयु सत्रह सागर प्रमाण है।
(चौथा भव) प्रश्न 1 - शशिप्रभ देव ने स्वर्ग से च्युत होकर कौन सी पर्याय में जन्म धारण किया?
उत्तर - शशिप्रभ देव स्वर्ग से च्युत होकर विद्याधर राजा विद्युत्गति की महारानी विद्युन्माली से अग्निवेग नामक बालक के रूप में जन्मा।
प्रश्न 2 - राजा विद्युत्गति कहाँ के राजा थे?
उत्तर - जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में पुष्कलावती देश के विजयार्ध पर्वत के लोकोत्तम नामक नगर के राजा थे।
प्रश्न 3 - कुमार अग्निवेग को वैराग्य कब हुआ?
उत्तर - राज्य संपदा को भोगते हुए सहसा भरी जवानी में ही उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया।
प्रश्न 4 - उन्होंने किन गुरु से दीक्षा ग्रहण की?
उत्तर - उन्होंने समाधिगुप्त मुनिराज के समीप धर्मश्रवण कर पंचेन्द्रिय विषयों को विषवत् विषम समझकर तत्क्षण ही तृणवत्, उनका त्याग कर दिया और पंचमहाव्रतों को प्राप्त कर अपने आप में कृतकृत्य हो गये।
प्रश्न 5 - दीक्षा लेने के पश्चात उन्होंने क्या किया?
उत्तर - दीक्षा के पश्चात् वे अग्निवेग महामुनि घोरातिघोर तपश्चरण करने लगे।
प्रश्न 6 - कमठ के जीव उस नारकी ने मरकर कहाँ जन्म लिया?
उत्तर - कमठ के जीव उस नारकी ने मरकर भयंकर अजगर के रूप में जन्म लिया।
प्रश्न 7 - क्या उस अजगर ने इस जन्म में भी मरुभूति के जीव पर उपसर्ग किया?
उत्तर - उस अजगर ने मुनि को देखते ही इस जन्म में भी उपसर्ग करते हुए क्रोध से भयंकर होकर उन्हें निगल लिया।
प्रश्न 8 - उपसर्ग सहन करते हुए वे मुनि इस नश्वर शरीर का त्याग कर कहाँ जन्मे ?
उत्तर - मुनिराज परम समताभाव से इस नश्वर शरीर से छूटकर सोलहवें स्वर्ग के पुष्कर विमान में देव हो गए।
(पाँचवा भव) प्रश्न 1 - देवों का जन्म कैसा होता है?
उत्तर - देवों का जन्म उपपाद शैय्या पर होता है, जन्म लेते ही वे सोलह वर्ष के युवा की भांति हो जाते हैं।
प्रश्न 2 - उस देव का वैभव कैसा था?
उत्तर - उस देव ने देव-देवांगनाओं के द्वारा सेवित असीम वैभव को प्राप्त कर लिया।
प्रश्न 3 - अच्युत देव की आयु कितनी थी?
उत्तर - 22 सागर प्रमाण ।
प्रश्न 4 - उसका मानसिक आहार कैसा था?
उत्तर - 22 हजार वर्ष व्यतीत होने पर उनका मानसिक आहार होता था।
प्रश्न 5 - कितने पक्ष व्यतीत होने पर वह श्वासोच्छ्वास ग्रहण करता था?
उत्तर - 22 पक्ष व्यतीत होने पर।
प्रश्न 6 - देव के शरीर की ऊँचाई कितनी थी?
उत्तर - 3 हाथ।
प्रश्न 7 - मुनि पर उपसर्ग करने के फलस्वरूप अजगर मरकर कहाँ गया?
उत्तर - अजगर सर्प मुनि हत्या के घोर पाप से क्रूर परिणामों से मरकर छठे नर्क में गया।
प्रश्न 8 - वहाँ उसकी आयु कितने वर्ष की थी?
उत्तर - 22 सागर ।
(छठा भव) प्रश्न 1 - अच्युत देव स्वर्ग से च्युत होकर कहाँ जन्मे ?
उत्तर - अच्युत देव स्वर्ग से च्युत होकर जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह में पद्म देश के अश्वपुर नगर में शिशु वज्रनाभि के रूप में जन्मे ।
प्रश्न 2 - अश्वपुर नगर के राजा का नाम बताइये ?
उत्तर - अश्वपुर नगर के राजा महाराज वज्रवीर्य नरेन्द्र थे।
प्रश्न 3 - शिशु वज्रनाभि की माता का क्या नाम था?
उत्तर - शिशु वज्रनाभि की माता का नाम महारानी विजया था।
प्रश्न 4 - शिशु वज्रनाभि की माता ने उसके जन्म से पूर्व कितने स्वप्न देखे?
उत्तर - शिशु वज्रनाभि की माता ने उसके जन्म से पूर्व 5 स्वप्न देखे।
प्रश्न 5 - वे स्वप्न क्या थे?
उत्तर - (1) सुदर्शन मेरु (2) सूर्य (3) चन्द्रमा (4) देवविमान (5) जल से परिपूर्ण सरोवर।
प्रश्न 6 - रानी विजया ने उन स्वप्नों का फल किससे पूछा?
उत्तर - रानी विजया ने उन स्वप्नों का फल महाराजा वज्रवीर्य से पूछा।
प्रश्न 7 - राजा ने उनका क्या फल बताया?
उत्तर - राजा ने स्वप्नों का फल बताते हुए कहा कि तुम चक्रवर्ती पुत्ररत्न को जन्म दोगी।
प्रश्न 8 - चक्रवर्ती राजा कितने खण्ड का स्वामी होता है?
उत्तर - छः खण्ड का।
प्रश्न 9 - चक्रवर्ती का क्या वैभव होता है?
उत्तर - चक्रवर्ती के ऐरावत हाथी के समान 84 लाख हाथी होते हैं, वायु के समान वेगशाली रत्नों से निर्मित 84 लाख रथ होते हैं, पृथ्वी की तरह आकाश में भी गमन करने वाले अठारह करोड़ उत्तम घोड़े होते हैं और योद्धाओं का मर्दन करने वाले 84 करोड़ पदाति (पियादे) होते हैं। 32 हजार नाट्यशालाएं, 72 हजार नगर, 96 करोड़ गाँव, 99 हजार द्रोणमुख, 48 हजार पत्तन, 16 हजार खेट, 56 अन्तर्दीप, 14 हजार संवाह होते हैं। भोजनशाला में चावल पकाने के लिए 1 करोड़ हंडे, बीज बोने की नली लगे 1 लाख करोड़ हल, 3 करोड़ गौशालाएं, 700 कुक्षवास, 28 हजार गहनवन व अठारह हजार आर्यखण्ड के म्लेच्छ राजा होते हैं।
प्रश्न 10 - चक्रवर्ती का शरीर कैसा होता है?
उत्तर - चक्रवर्ती का शरीर वज्रमय होता है, उनका संस्थान समचतुरस्र होता है, छह खण्ड के सभी राजाओं में जितना बल होता है, उन सबसे अधिक बल उनके एक शरीर में होता है।
प्रश्न 11 - उनके चक्ररत्न का क्या प्रभाव रहता है?
उत्तर - उनके चक्ररत्न के प्रभाव से छह खण्ड के सभी राजा उनकी आज्ञा को सिर से धारण करते हैं। 32 हजार मुकुटबद्ध राजा उनके चरणों में नत रहते हैं।
प्रश्न 12 - चक्रवर्ती की कितनी रानियाँ होती हैं?
उत्तर - चक्रवर्ती की 96 हजार रानियाँ होती हैं जिनमें से 32 हजार रानियाँ आर्यखण्ड की, 32 हजार रानियाँ विद्याधर कन्याएं एवं 32 हजार रानियाँ म्लेच्छ खण्ड में जन्में राजाओं की हैं। ये सब अप्सराओं के समान सुन्दर होती हैं।
प्रश्न 13 - चक्रवर्ती की कितनी निधियाँ होती हैं?
उत्तर - 9 निधियाँ होती हैं?
प्रश्न 14 - 9 निधियों के नाम बताइये?
उत्तर - काल, महाकाल, नैसर्प, पांडुक, पद्म, माणव, पिंगल, शंख और सर्वरत्न ।
प्रश्न 15 - काल निधि से किसकी प्राप्ति होती है?
उत्तर - काल निधि से काव्य, कोश, अलंकार, व्याकरण आदि शास्त्र और वीणा, बांसुरी, नगाड़े आदि मिलते रहते हैं।
प्रश्न 16 - महाकाल निधि का क्या उपयोग है?
उत्तर - महाकाल निधि से असि, मसि, कृषि आदि छह कर्मों के साधन ऐसे समस्त पदार्थ और संपदाएं निरन्तर उत्पन्न होती रहती हैं।
प्रश्न 17 - नैसर्प निधि क्या देती है?
उत्तर - नैसर्प निधि शय्या, आसन, मकान आदि देती है।
प्रश्न 18 - पांडुक निधि का क्या कार्य है?
उत्तर - पांडुक निधि समस्त धान्य और छहों रसों को उत्पन्न करती है।
प्रश्न 19 - पद्मनिधि क्या करती है?
उत्तर - पद्मनिधि रेशमी, सूती वस्त्र आदि प्रदान करती है।
प्रश्न 20 - शंखनिधि का क्या उपयोग है?
उत्तर - शंखनिधि सूर्य की प्रभा को तिरस्कृत करने वाले सुवर्ण को देती है।
प्रश्न 21 - सर्वरत्न निधि क्या देती है?
उत्तर - सर्वरत्ननिधि महानील, इन्द्रनील, पद्मराग, वैडूर्य, स्फटिक आदि अनेक प्रकार के रत्नों और मणियों को देती है।
प्रश्न 22 - चक्रवर्ती के कितने रत्न होते हैं?
उत्तर - 14 रत्न होते हैं।
प्रश्न 23 - इनमें से कितने रत्न सजीव और कितने निर्जीव होते हैं?
उत्तर - इनमें से 7 रत्न सजीव और 7 रत्न निर्जीव होते हैं।
प्रश्न 24 - इन रत्नों का क्या कार्य है?
उत्तर - ये सब रत्न पृथ्वी की रक्षा और विशाल ऐश्वर्य और उपभोग के साधन हैं।
प्रश्न 25 -14 रत्नों में से 7 निर्जीव रत्नों के नाम बताइये?
उत्तर - चक्र, छत्र, दंड, खड्ग, मणि, चर्म और कांकिणी ये सात निर्जीव रत्न हैं।
प्रश्न 26 - सात सजीव रत्नों के नाम बताइये?
उत्तर - सेनापति, गृहपति, हाथी, घोड़ा, स्त्री, तक्ष (सिलावट) और पुरोहित ये सात सजीव रत्न हैं।
प्रश्न 27 - चक्रवर्ती वज्रनाभि के चक्र का क्या नाम था?
उत्तर - सुदर्शन चक्र।
प्रश्न 28 - उनके छत्र का क्या नाम था ?
उत्तर - सूर्यप्रभ छत्र।
प्रश्न 29 - उनके दण्डरत्न का क्या कार्य है?
उत्तर - दण्डरत्न से गुफा का द्वार खोलते हैं।
प्रश्न 30 - सौनन्दक नामक तलवार से क्या करते हैं?
उत्तर -सौनन्दक तलवार को देखकर वैरीजन कम्पित होकर चक्रवर्ती की शरण में आ जाते हैं।
प्रश्न 31 - मणिरत्न का काम बताइये?
उत्तर - मणिरत्न (चूड़ामणि) अंधकार को दूर कर देता है।
प्रश्न 32 - चर्मरत्न और कांकिणी का क्या अर्थ है?
उत्तर - चर्मरत्न से मेघकृत जल के उपद्रव से सेना की रक्षा होती है और कांकिणी रत्न से गुफा में सूर्य-चंद्र का आकार बनाकर प्रकाश फैलाया जाता है।
प्रश्न 33 - सेनापति रत्न और गृहपति रत्न का क्या कार्य है?
उत्तर - सेनापति रत्न दिग्विजय में सभी योद्धाओं से अजेय रहता है और कामवृष्टि नामक गृहपति रत्न घर के सारे काम-काज संभाल लेता है।
प्रश्न 34 - अन्य सजीव रत्नों के क्या-क्या कार्य हैं?
उत्तर - विजयगिरि नामक ऐरावत सदृश उत्तम हाथी राजा का वाहन बनता है। पवनंजय नाम का घोड़ा स्थल के समान समुद्र में भी दौड़ लगाता है। सुभद्रा नाम का स्त्रीरत्न चक्रवर्ती के भोगसुख का साधन है जो कि अपने हाथ की शक्ति से वज्र को भी दूर कर सकती है। भद्रपुर नामक तक्ष रत्न स्थान-स्थान पर सुन्दर महलों का निर्माण करता है और बुद्धिसागर नाम का पुरोहित रत्न सभी निमित्तादि विद्या में प्रवीण रहता है, सभी धार्मिक कार्य उसी के अधीन रहते हैं।
प्रश्न 35 - चक्रवर्ती के अन्य भोगोपभोग साधन कितने और कौन से हैं?
उत्तर - चक्रवर्ती के नवनिधि, पट्टरानियां, नगर, शय्या, आसन, सेना, नाट्यशाला, भाजन, भोजन और सवारी ये दस प्रकार के भोगोपभोग के साधन रहते हैं।
प्रश्न 36 - चक्रवर्ती के भण्डार का क्या नाम है?
उत्तर - चक्रवर्ती के भण्डार का नाम कुबेरकांत है जो कभी खाली नहीं होता है।
प्रश्न 37 - कोठार का क्या नाम है?
उत्तर - 'वसुधारक' नाम का अटूट कोठार है।
प्रश्न 38 - उनकी रत्नमाला का नाम बताइये ?
उत्तर - अवतंसिका।
प्रश्न 39 - उनके तंबू और शय्या का क्या नाम है?
उत्तर - उनका बहुत ही मनोहर कपड़े का बना हुआ 'देवरम्य' नाम का तम्बू है जिसके पाए रत्नमयी हैं, जो सिंह के आकार के हैं, ऐसी 'सिंहवाहिनी' नाम की शय्या है।
प्रश्न 40 - सिंहासन का क्या नाम है?
उत्तर - 'अनुत्तर' नाम का सबसे श्रेष्ठ सिंहासन है।
प्रश्न 41 - चामर का नाम बताइये?
उत्तर - 'अनुपमा' (देवप्रदत्त)।
प्रश्न 42- उनके मणिकुंडल, खड़ाऊँ व कवच का नाम बताइये?
उत्तर - विद्युत्प्रभ नामक मणिकुंडल हैं, रत्नों की किरणों से व्याप्त विषमोचिका' नाम की खड़ाऊँ है जो कि चक्रवर्ती के सिवाय अन्य किसी के पैर का स्पर्श होते ही विष को छोड़ने लगती है तथा कवच का नाम 'अभेद्य' है।
प्रश्न 43 - वज्रनाभि चक्रवर्ती के रथ का नाम बताइये?
उत्तर - अजितंज।
प्रश्न 44 - धनुष और बाण का क्या नाम है?
उत्तर - 'वज्रकांड' नाम का धनुष है और 'अमोघ' नाम के सफल बाण हैं।
प्रश्न 45 - उनके पास कौन सी शक्ति है?
उत्तर - शत्रु को नाश करने वाली 'वज्रतुंडा' नाम की प्रचंड शक्ति है।
प्रश्न 46 - भाला एवं छुरी का नाम बताइये?
उत्तर 'सिंहाटक' नाम का भाला और रत्ननिर्मित मूठ वाली 'लोहवाहिनी' नाम की छुरी है।
प्रश्न 47 - विशेष शस्त्र का क्या नाम है?
उत्तर 'मनोवेग' नाम का कठाव जाति का एक विशेष शस्त्र है।
प्रश्न 48- चक्रवर्ती की बारह भेरियों के नाम बताइये?
उत्तर - चक्रवर्ती के 'आनंदिनी' नाम की बारह भेरी हैं जो अपनी आवाज को 12 योजन तक फैलाकर बजा करती हैं।
प्रश्न 49-नगाड़े कितने हैं? नाम बताइये?
उत्तर - 'विजयघोष' नाम के 12 नगाड़े हैं जिनकी आवाज लोग आनंद के साथ सुना करते हैं।
प्रश्न 50 - उनके शंखों की कितनी संख्या है?
उत्तर - उनके 'गंभीरावर्त' नाम के 24 शंख हैं जो कि समुद्र से उत्पन्न हुए हैं।
प्रश्न 51 - उनका दिव्य भोजन क्या है?
उत्तर - चक्रवर्ती के 'महाकल्याण' नाम का दिव्य भोजन है।
प्रश्न 52-पताकाएं कितनी हैं?
उत्तर - 48 करोड़ ।
प्रश्न 53 - क्या इतने वैभव को प्राप्त कर भी वे धर्मकार्य करते थे?
उत्तर - चक्रवर्ती वज्रनाभि इतने वैभव को प्राप्त करके भी धर्म को नहीं भूले थे प्रत्युत् अधिक-अधिक रूप से प्रतिदिन जिनेन्द्रदेव की पूजन करते थे, निर्ग्रन्थ गुरुओं व अन्य त्यागियों को आहारादि दान देते थे तथा निरन्तर शील का पालन करते हुए समय-समय पर उपवास भी करते थे।
प्रश्न 54-वज्रनाभि चक्रवर्ती को इतने अतुल्य वैभव के बीच वैराग्य कैसे हुआ?
उत्तर - एक बार उस नगर में एक महामुनि पधारे, उनके द्वारा दिये गए दिव्य अमृतमयी उपदेश को सुनकर वे पंचेन्द्रियों के विषयों से विरक्त हो गए और निर्ग्रन्थ महामुनि बन गए।
प्रश्न 55 - दीक्षा के पश्चात् उन्होंने क्या किया?
उत्तर - दीक्षा के पश्चात् उन्होंने दुर्द्धर तपश्चरण किया।
प्रश्न 56 - महामुनि वज्रनाभि के ऊपर उपसर्ग किसने किया?
उत्तर - एक क्रूरकर्मा भिल्लराज ने कुपित होकर अपने तीक्ष्ण बाणों से उनके शरीर का भेदन कर कायर जनों से असहनीय भयंकर उपसर्ग किया।
प्रश्न 57 - ऐसी स्थिति में मुनिराज ने क्या किया?
उत्तर - मुनिराज शरीर से पूर्णतया निस्पृह होकर ज्ञानदर्शन स्वरूप अपनी आत्मा का ध्यान करते हुए धर्मध्यान में स्थिर हो गए और इस नश्वर शरीर से चैतन्य आत्मा का प्रयाण हो गया।
प्रश्न 58 - इस नश्वर देह का त्याग कर उन्होंने किस गति की प्राप्ति की?
उत्तर - इस नश्वर देह का त्यागकर वे मध्यम ग्रैवेयक के मध्यम विमान में श्रेष्ठ अहमिन्द्र हो गए।
(सातवाँ भव) प्रश्न 1 - अहमिन्द्र की आयु कितने सागर की थी?
उत्तर - 27 सागर।
प्रश्न 2 - अहमिन्द्र का शरीर कैसा था?
उत्तर - अहमिन्द्र का शरीर अतिशय देदीप्यमान, समचतुरस्र संस्थान से युक्त था।
प्रश्न 3 - अहमिन्द्र कहाँ-कहाँ जाते हैं?
उत्तर - अहमिन्द्र परक्षेत्र में विहार नहीं करते हैं।
प्रश्न 4 - स्वर्ग में रहते हुए वे क्या करते हैं?
उत्तर - अहमिन्द्र तत्त्वचर्चा में तल्लीन रहते हुए सम्यग्दर्शन की प्रशंसा करते हैं और अपनी आत्मा के अधीन उत्पन्न हुए उत्कृष्ट सुख को धारण करते हुए सदैव प्रसन्न रहते हैं।
प्रश्न 5 - अहमिन्द्र का जीव स्वर्ग से च्युत होकर कहाँ जन्मा?
उत्तर - अहमिन्द्र का जीव स्वर्ग से च्युत होकर अयोध्या में आनन्द नामक राजकुमार के रूप में जन्मा।
प्रश्न 6 - कमठ का जीव भील मरकर कहाँ गया?
उत्तर - भील रौद्रध्यानपूर्वक शरीर को छोड़कर मुनिहत्या के पाप से सातवें नरक में चला गया।
प्रश्न 7 - जन्मते ही उसे किस दुख का सामना करना पड़ा?
उत्तर - उस अंधकूपमय नरकवास में उसने औंधे मुख जन्म लिया और जन्म लेते ही भूमि पर धड़ाम से गिरा, भूमि का स्पर्श होते ही जैसे हजारों बिच्छुओं ने एक साथ डंक मारा हो, ऐसी भयंकर वेदना हुई, पुनः वह नारकी 50 योजन तक ऊपर उछला और गिरा, जैसे तपे हुए तवे पर तिलों को डालते ही वे पुटपुट उछलने लगते हैं। छिन्न-भिन्न शरीर होता हुआ अत्यन्त दुखी और भयभीत उसी धरा पर लोट-पोटकर बिलबिलाने लगा।
प्रश्न 8 - नारकी जीव के कितने और कौन से ज्ञान होते हैं?
उत्तर - नारकी जीव के कुमति, कुश्रुत और कुअवधि ये तीन ज्ञान होते हैं।
प्रश्न 9 - वहाँ भूख लगने पर क्या आहार है?
उत्तर - नारकी जीव यदि तीन लोक का अन्न भी खा जायें तो भी उनकी भूख शांत नहीं हो सकती है किन्तु खाने को वहाँ एक कण भी नसीब नहीं होता है।
प्रश्न 10- प्यास लगने पर पीने योग्य वस्तु क्या है?
उत्तर - सागर के समस्त जल को पीने के बाद भी प्यास बुझ नहीं सकती, फिर भी वहाँ पर एक बूँद पानी नहीं मिलता है।
प्रश्न 11 - क्या नरक में हर समय ठण्डक रहती है?
उत्तर - नरक में इतनी भयंकर ठण्डी है कि एक लाख योजन प्रमाण इतने बड़े लोहे के गोले को पिघलाकर डाल दो किन्तु उसी क्षण वह जम जाता है।
प्रश्न 12-उस नारकी को कितने वर्ष तक यह दुःख भोगने पड़े?
उत्तर - भील का जीव वहाँ पर सत्ताईस सागर प्रमाण मध्यम आयु पर्यंत इन दुःखों का अनुभव करता रहा है।
प्रश्न 13- सागर किसे कहते हैं?
उत्तर - दो हजार कोश प्रमाण एक लम्बा-चौड़ा और गहरा गड्डा कल्पना में बनाइये। उसे सात दिन के अन्दर जन्में हुए भेड़ों के बालों से भर दीजिए। इन बालों के इतने इतने छोटे खण्ड कर दिए जाएं जिनका फिर और खण्ड ही न हो सके, ऐसे रोम खण्डों से भरे हुए उस गड्ढे की खूब ऊपर से कुटाई कर दीजिए। पुनः उनमें से एक-एक रोम को सौ-सौ बरस में निकालिए। जब वह गर्त खाली हो जाए तब एक 'व्यवहार पल्य' होता है। इसमें जितना समय लगा है उसे असंख्यात करोड़ वर्षों के समयों से गुणा कर दीजिए। इसमें जितने समय जावेंगे वह 'उद्धार पल्य' कहलाता है। अनन्तर सौ वर्ष के जितने समय हैं उतने समयों से उद्धार पल्य के रोमों को गुणित करने से जितने समय होवें यह 'अद्धापल्य' हो जाता है। इन दस कोड़ाकोड़ी 'अद्धापल्यों' का एक सागर होता है।
प्रश्न 14-कोड़ाकोड़ी किसे कहते हैं?
उत्तर - एक करोड़ को एक करोड़ से गुणा करने पर जो संख्या आती है वह कोड़ाकोड़ी कहलाती है।
(आठवाँ भव) प्रश्न 1 - अयोध्यापति आनंद कुमार के माता-पिता का क्या नाम था?
उत्तर - कुमार आनंद की माता का नाम महारानी प्रभाकारी तथा पिता का नाम राजा वज्रबाहु था
प्रश्न 2 - राजा आनन्द कुमार किस पद पर आरूढ़ थे?
उत्तर - महामण्डलीक पद पर।
प्रश्न 3 - उनके अधीन कितने राजागण थे?
उत्तर - 8 हजार मुकुटबद्ध राजा उनकी आज्ञा को शिरसा वहन करते थे।
प्रश्न 4 - महाराजा आनन्द ने आष्टाहिक महापर्व में कौन सा अनुष्ठान किया?
उत्तर - महाराजा आनन्द ने आष्टाहिक महापर्व में नन्दीश्वर पूजन का अतुल वैभव के साथ आयोजन किया।
प्रश्न 5 - इसकी सलाह किसने दी?
उत्तर - इसकी सलाह स्वामिहित नामक विवेकशील मंत्री ने दी।
प्रश्न 6 - जिनेन्द्रदेव की पूजा से क्या फल मिलता है?
उत्तर - जिनेन्द्रदेव की पूजा सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाली है।
प्रश्न 7 - पर्व के दिनों में की गई पूजा क्या फल प्रदान करती है?
उत्तर - पर्व के संयोग से वह पूजा अतिशय पुण्य को प्रदान करने वाली हो जाती है। जिनपूजा के समान इस संसार में और कोई उत्तम कार्य नहीं है। जिनेन्द्रदेव की पूजा की भावना ही सभी दुःखों को दूर करने का एक अमोघ उपाय है।
प्रश्न 8 - नन्दीश्वर महापूजा में कौन से महामुनि पधारे?
उत्तर - विपुलमति नामक महामुनि पधारे।
प्रश्न 9 - राजा ने उनसे क्या निवेदन किया?
उत्तर - राजा ने उनसे अचेतन प्रतिमाओं द्वारा सचेतन को पुण्य फल प्रदान करने की जिज्ञासा शांत करने हेतु निवेदन किया।
प्रश्न 10- मुनिराज ने उसका क्या उत्तर दिया?
उत्तर - राजा ने कहा कि जिनमंदिर और उनकी प्रतिमाओं के दर्शन करने वालों के परिणामों में जितनी निर्मलता और प्रकर्षता होती है वैसी अन्य कारणों से नहीं हो सकती है। जैसे-कल्पवृक्ष, चिंतामणि आदि अचेतन होते हुए भी मनवांछित और मनचिंतित फल देने में समर्थ हैं, उनसे भी कहीं अधिक वैसी ही जिनप्रतिमाएं सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने में समर्थ है।
प्रश्न 11 - वीतराग मुद्रा के दर्शन का क्या फल है?
उत्तर - प्रतिमारूप में वीतरागमुद्रा को देखकर जिनेन्द्रदेव का स्मरण होता है जिससे अनन्तगुणा पुण्यबंध हो जाता है।
प्रश्न 12 - जिनप्रतिमा के दर्शन न करने वाले अथवा निन्दा करने वालों को क्या फल मिलता है?
उत्तर - जो मूढ़जन जिनप्रतिमाओं का दर्शन नहीं करते हैं या उनकी निन्दा करते हैं वे स्वयमेव अनन्त संसार सागर में डूब जाते हैं।
प्रश्न 13-उसके पश्चात् मुनिराज ने राजा को क्या बताया?
उत्तर - उसके बाद मुनिराज ने राजा के सामने तीन लोक के अकृत्रिम चैत्यालयों तथा सूर्य, चन्द्र आदि के विमान में स्थित जिनबिंब का वर्णन किया।
प्रश्न 14- सूर्य का विमान कितने योजन का है?
उत्तर - 48/61 योजन।
प्रश्न 15 - एक योजन में कितने मील होते हैं?
उत्तर - 4000 मील।
प्रश्न 16- सूर्य का विमान पृथ्वीतल से कितने योजन एवं कितने मील की ऊँचाई पर है?
उत्तर - सूर्य का विमान पृथ्वीतल से 800 योजन अर्थात् 3200000 मील की ऊँचाई पर है।
प्रश्न 17- सूर्य की किरणें कितनी और कैसी हैं?
उत्तर - इसमें 12 हजार किरणें हैं जो कि अति उग्र और उष्ण हैं।
प्रश्न 18 - यह विमान कैसा है?
उत्तर - यह विमान अर्धगोलक के सदृश है अर्थात् जैसे गेंद या नारंगी को बीच से काटने पर जैसा आकार होता है वैसा ही इन विमानों का आकार है।
प्रश्न 19- सूर्य के विमान को कौन खींचता है?
उत्तर - सूर्य के विमान को आभियोग्य (वाहन) जाति के 16000 देव सतत खींचते रहते हैं।
प्रश्न 20- कौन सी दिशा में कौन से आकार के कितने देव रहते हैं?
उत्तर - 4000 देव पूर्व दिशा में सिंह का आकार धारण करते हैं, 4000 देव पश्चिम में बैल का आकार, 4000 देव दक्षिण में हाथी का आकार एवं 4000 देव उत्तर में घोड़े का आकार धारण किये रहते हैं।
प्रश्न 21 - सूर्य का विमान किस धातु का बना हुआ है?
उत्तर - सूर्य का विमान पृथ्वीकायिक चमकीली धातु से बना है जो कि अकृत्रिम है।
प्रश्न 22-किस कर्म के उदय से सूर्य की किरणें चमकती हैं?
उत्तर - सूर्य बिम्ब में स्थित पृथ्वीकायिक जीवों के आतप नामकर्म का उदय होने से उसकी किरणें चमकती हैं तथा उसके मूल में उष्णता न होकर किरणों में ही उष्णता होती है।
प्रश्न 23 - आकाश में सूर्य की कितनी गलियाँ हैं?
उत्तर - 184 गलियाँ हैं।
प्रश्न 24 - जम्बूद्वीप में कितने सूर्य एवं कितने चन्द्रमा हैं?
उत्तर - जम्बूद्वीप में 2 सूर्य और 2 चन्द्रमा हैं।
प्रश्न 25- एक मिनट में सूर्य की गति लगभग कितने मील प्रमाण है?
उत्तर - 447623 मील प्रमाण।
प्रश्न 26 - सूर्य विमान में क्या-क्या हैं?
उत्तर - सूर्य विमान में नीचे का गोल भाग तो हम आपको दिख रहा है तथा ऊपर के समतल भाग में चारों तरफ गोल तटवेदी है उसमें चारों दिशाओं में गोपुर - मुख्य फाटक हैं। इस विमान के बीचों-बीच में उत्तम वेदी सहित राजांगण हैं, उसके ठीक बीच में रत्नमय दिव्यकूट है। उस कूट पर वेदी एवं 4 तोरणद्वारों से युक्त जिनमंदिर है।
प्रश्न 27 - उन जिनभवनों में कितनी जिनप्रतिमाएँ हैं?
उत्तर - 108 जिनप्रतिमाएँ।
प्रश्न 28 - उनकी भक्ति-वन्दना देवगण किस प्रकार करते हैं?
उत्तर - सभी देवगण गाढ़ भक्ति से जल, चंदन, तंदुल, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप और फलों से नित्य ही उनकी पूजा करते रहते हैं।
प्रश्न 29 - इन जिनभवनों में सूर्य देव के भवन किस प्रकार के बने हैं?
उत्तर - इन जिनभवनों के चारों ओर समचतुष्कोण, लंबे और नाना प्रकार के सुंदर-सुंदर सूर्य देव के भवन बने हुए हैं।
प्रश्न 30 - ये भवन किस वर्ण के हैं?
उत्तर - कितने ही भवन मरकत वर्ण के, कितने ही कुंदपुष्प के और कितने ही सुवर्ण सदृश बने हुए हैं।
प्रश्न 31 - इन सूर्य भवनों में सूर्यदेव कहाँ विराजते हैं?
उत्तर - इन सूर्य भवनों में सिंहासन पर सूर्य देव विराजमान होते हैं।
प्रश्न 32- सूर्य इन्द्र की कितनी देवियाँ हैं?
उत्तर - सूर्य इन्द्र की मुख्य देवियाँ चार हैं और अन्य बहुत सारी देवियाँ हैं।
प्रश्न 33 - उन चार मुख्य देवियों के नाम बताइये?
उत्तर - वे चार मुख्य देवियाँ हैं- द्युतिश्रुति, प्रभंकरा, सूर्यप्रभा और अर्चिमालिनी।
प्रश्न 34-सूर्य विमान के जिनमंदिर की असाधारण विभूति को सुनकर आनंद महाराज ने क्या किया?
उत्तर - सूर्य विमान के जिनमंदिर की असाधारण विभूति को सुनकर आनंद महाराज को बहुत ही श्रद्धा हो गई। वह प्रतिदिन आदि और अंत समय में दोनों हाथ जोड़कर, मुकुट झुकाकर, सूर्य विमान में स्थित जिनप्रतिमाओं की स्तुति करने लगा और महल की छत पर प्रतिदिन अर्घ्य चढ़ाकर पूजा करने लगा। साथ ही कारी गरों के द्वारा मणि और सुवर्ण का एक सूर्य विमान बनवाकर उसमें कांतियुक्त सुन्दर जिनमंदिर बनवाया तथा शास्त्रोक्त विधि से भक्तिपूर्वक आष्टान्हिक, चतुर्मुख, रथावर्त, सर्वतोभद्र तथा कल्पवृक्ष नाम की महापूजाएं कीं।
प्रश्न 35 - सूर्य उपासना की परम्परा कब से शुरू हुई?
उत्तर - आनंद महाराज को सूर्य की पूजा करते देख उनकी प्रामाणिकता से देखा-देखी अन्य लोग भी स्वयं भक्तिपूर्वक सूर्यमंडल की स्तुति करने लगे। इस लोक में उसी समय से सूर्य की उपासना चल पड़ी है।
प्रश्न 36 - आनन्द महाराज को वैराग्य किस निमित्त से हुआ?
उत्तर - उन्हें एक समय दर्पण में मुख अवलोकन करते ही मस्तक पर एक धवल केश दिखाई दिया और वे विषय-भोगों से विरक्त हो गए।
प्रश्न 37 - उन्होंने किन गुरु से दीक्षा ग्रहण की?
उत्तर - उन्होंने सागरदत्त मुनिराज के समीप जिनदीक्षा ग्रहण की।
प्रश्न 38- अट्ठाईस मूलगुण कौन से हैं?
उत्तर - 5 महाव्रत, 5 समिति, 5 इन्द्रियनिरोध, 6 आवश्यक और 7 शेष गुण ये 28 मूलगुण होते हैं।
प्रश्न 39 - पंच महाव्रतों के नाम बताइये?
उत्तर - अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह त्याग महाव्रत।
प्रश्न 40- अहिंसा महाव्रत किसे कहते हैं?
उत्तर - सम्पूर्ण त्रस-स्थावर जीवों की विराधना का त्याग करना अहिंसा महाव्रत है।
प्रश्न 41- सत्य महाव्रत किसे कहते हैं?
उत्तर - असत्य और अप्रशस्त वचन बोलने का सर्वथा त्याग करना सत्य महाव्रत है।
प्रश्न 42 - अचौर्य महाव्रत का क्या लक्षण है?
उत्तर - किसी की बिना दी हुई वस्तु ग्रहण करना अचौर्य महाव्रत है।
प्रश्न 43-ब्रह्मचर्य महाव्रत का क्या लक्षण है?
उत्तर - स्त्री मात्र का त्याग कर देना ब्रह्मचर्य महाव्रत है।
प्रश्न 44 - परिग्रह त्याग महाव्रत की परिभाषा बताओ?
उत्तर - वस्त्र मात्र भी परिग्रह का त्याग कर देना परिग्रह त्याग महाव्रत है।
प्रश्न 45- समितियाँ कितनी होती हैं परिभाषा सहित बताइये?
उत्तर - चार हाथ आगे जमीन देखकर चलना ईर्या समिति है, हित-मित- प्रिय वचन बोलना भाषा समिति, छ्यालिस दोष तथा बत्तीस अंतराय टालकर शुद्ध आहार लेना एषणा समिति, देख-शोधकर पुस्तक आदि रखना, उठाना आदाननिक्षेपण समिति और प्रासुक भूमि में मल-मूत्रादि विसर्जन करना उत्सर्ग समिति है।
प्रश्न 46 - पंचेन्द्रिय निरोध किसे कहते हैं?
उत्तर - स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इन पांच इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना पंचेन्द्रिय निरोध है।
प्रश्न 47 - छह आवश्यकों के नाम बताओ?
उत्तर - सामायिक, स्तुति, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग ये षट् आवश्यक हैं।
प्रश्न 48- सामायिक किसे कहते हैं?
उत्तर - साम्यभावपूर्वक त्रिकाल सामायिक करना सामायिक आवश्यक है।
प्रश्न 49 - स्तुति और वंदना में क्या अंतर है?
उत्तर - चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करना स्तुति आवश्यक है और एक तीर्थंकर आदि की स्तुति करना वंदना है।
प्रश्न 50 - प्रतिक्रमण क्या है?
उत्तर - लगे हुए दोषों को दूर करना प्रतिक्रमण है।
प्रश्न 51 - प्रत्याख्यान व कायोत्सर्ग में क्या अन्तर है?
उत्तर - आगामी दोषों का त्याग करना या आहार आदि का त्याग करना प्रत्याख्यान है और योगमुद्रा आदि से स्थिर चित्त होकर कायोत्सर्ग, ध्यानादि करना कायोत्सर्ग आवश्यक है। - वस्त्र मात्र का त्यागकर दिगम्बर रहना, केशलोंच करना, स्नान उत्तर
प्रश्न 52 - सात शेष गुण कौन-कौन से हैं?
दंतधावन नहीं करना, भूमिशयन करना, एक बार भोजन करना और खड़े होकर आहार लेना ये सात शेष गुण हैं।
प्रश्न 53 - तीर्थंकर प्रकृति बंध के लिए कारणभूत कौन सी भावनाएं हैं?
उत्तर - सोलहकारण भावना।
प्रश्न 54 - आनंद महाराज ने दीक्षा लेने के पश्चात् क्या किया ?
उत्तर - आनंद महाराज 28 मूलगुणों का पालन करते हुए बारह प्रकार के तपश्चरण में तत्पर थे और 22 परिषहों को जीतते हुए उत्तरगुणों को भी धारण कर रहे थे। गुरु के पादमूल में बैठकर उन्होंने ग्यारह अंग तक श्रुत का अध्ययन किया। अनंतर तीर्थंकर नामकर्म के लिए कारणभूत सोलहकारण भावनाओं का चिंतवन किया।
प्रश्न 55 - सोलहकारण भावनाओं के नाम बताइये?
उत्तर - दर्शनविशुद्धि, विनयसम्पन्नता, शीलव्रतेष्वनतिचार, अभीक्ष्णज्ञानोपयोग, संवेग, शक्तितस्त्याग, शक्तितस्तप, साधुसमाधि, वैय्यावृत्तकरण, अर्हद्भक्ति, आचार्यभक्ति, बहुश्रुत भक्ति, प्रवचन भक्ति, आवश्यक अपरिहाणि, मार्ग प्रभावना एवं प्रवचन वात्सल्य ये 16 भावनाएं हैं।
प्रश्न 56 - दर्शनविशुद्धि भावना किसे कहते हैं?
उत्तर - पच्चीस मलदोष रहित विशुद्ध सम्यग्दर्शन को धारण करना दर्शनविशुद्धि है।
प्रश्न 57 - विनयसम्पन्नता का अर्थ बताओ?
उत्तर - देव, शास्त्र, गुरु तथा रत्नत्रय का विनय करना।
प्रश्न 58 - शीलव्रतेष्वनतिचार का मतलब बताइये?
उत्तर - व्रतों और शीलों में अतिचार नहीं लगाना।
प्रश्न 59 - 'अभीक्ष्णज्ञानोपयोग' किसे कहते हैं?
उत्तर - सदा ज्ञान के अभ्यास में लगे रहना।
प्रश्न 60 - संवेग का क्या अर्थ है?
उत्तर - धर्म और धर्म के फल में अनुराग होना।
प्रश्न 61 - शक्तितस्त्याग और शक्तितस्तप में क्या अन्तर है?
उत्तर - अपनी शक्ति के अनुसार आहार, औषधि, अभय और ज्ञानदान देना शक्तितस्त्याग और अपनी शक्ति को न छिपाकर अंतरंग बहिरंग तप करना शक्तितस्तप है।
प्रश्न 62- साधु-समाधि का लक्षण बताओ?
उत्तर - साधुओं का उपसर्ग आदि दूर करना या समाधि सहित वीरमरण करना।
प्रश्न 63 - वैय्यावृत्तकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर - व्रती, त्यागी, साधर्मी की सेवा करना, वैय्यावृत्ति करना।
प्रश्न 64 - अर्हत्भक्ति और आचार्यभक्ति में क्या अंतर है?
उत्तर - अरहंत भगवान की भक्ति करना अर्हत्भक्ति और आचार्य की भक्ति करना आचार्यभक्ति है।
प्रश्न 65 - बहुश्रुतभक्ति व प्रवचनभक्ति में क्या अन्तर है?
उत्तर - उपाध्याय परमेष्ठी की भक्ति करना बहुश्रुतभक्ति एवं जिनवाणी की भक्ति करना प्रवचन भक्ति है।
प्रश्न 66 - मार्गप्रभावना किसे कहते हैं?
उत्तर - जैनधर्म का प्रभाव फैलाना।
प्रश्न 67- प्रवचन वात्सल्य किसे कहते हैं?
उत्तर - साधर्मीजनों में अगाध प्रेम करना प्रवचनवात्सल्य है।
प्रश्न 68 - मुनिराज आनन्द के ऊपर उपसर्ग किसने किया?
उत्तर - एक समय मुनिराज क्षीर वन में प्रायोपगमन सन्यास लेकर प्रतिमायोग से ध्यान में लीन थे तभी कमठचर पापी भील के जीव एक सिंह ने दहाड़ कर मुनिराज पर धावा बोल दिया और उनके कंठ को पकड़कर तीक्ष्ण नखों से सारे बदन को छिन्न-भिन्न कर खा लिया।
प्रश्न 69-मुनि ने उस उपसर्ग को किस प्रकार सहन किया?
उत्तर - मुनिराज उस पशुकृत उपसर्ग को परम शांतभाव से सहन करते हैं और अनंत गुणों के निधान, आत्मा के चिंतन में अपना उपयोग लगा देते हैं और इस नश्वर भौतिक मल-मूत्र के पिंड स्वरूप देह को छोड़कर दिव्य वैक्रियक देह धारण कर लेते हैं।
प्रश्न 70- उन्होंने किस गति की प्राप्ति की?
उत्तर - वे अच्युत स्वर्ग के प्राणत नामक विमान में इन्द्र हो गए।
प्रश्न 71- सिंह का जीव मरकर कहाँ गया?
उत्तर - सिंह का जीव मरकर नरक गया।
(नवमाँ भव) प्रश्न 1 - अच्युतेन्द्र की आयु कितने सागर की थी?
उत्तर - 20 सागर।
प्रश्न 2 - कितने वर्ष बाद उनका मानसिक आहार होता था?
उत्तर - 20 हजार वर्ष बाद।
प्रश्न 3 - कितने वर्ष बाद वे श्वासोच्छ्वास लेते थे?
उत्तर - बीस पक्ष (10 माह) बीत जाने पर।
प्रश्न 4 - उनका शरीर कितने हाथ का था?
उत्तर - साढ़े तीन हाथ का।
प्रश्न 5 - अच्युत स्वर्ग में जन्म लेने के बाद सर्वप्रथम उन्होंने क्या किया?
उत्तर - अपने दिव्य अवधिज्ञान के द्वारा सारी बातें जानकर वे इन्द्र मंगल स्नान आदि विधिवत् करके सबसे पहले जिनेन्द्रदेव की पूजा करते हैं।
प्रश्न 6 - उसके पश्चात् उन्होंने क्या किया?
उत्तर - उसके पश्चात् उन्होंने अपनी विभूति का, देवांगनाओं का अवलोकन किया।
प्रश्न 7 - देवों में क्या विशेषता होती है?
उत्तर - उनके शरीर में मल-मूत्र, पसीना आदि नहीं निकलता है, न उनकी उत्तर -3 पलकें झपकतीं हैं, न नख और केश ही बढ़ते हैं। बुढ़ापा, अकालमृत्यु और व्याधि भी उनके नहीं है।
प्रश्न 8 - अच्युतेन्द्र की चर्या क्या है?
उत्तर - इन्द्रराज अपने परिवार देवों के साथ कभी नन्दीश्वर में पूजा रचाते हैं, कभी सुमेरु पर्वतों की वंदना के लिए चले जाते हैं, कभी सीमंधर आदि तीर्थंकर के समवसरण में दिव्य ध्वनि के द्वारा दिव्य धर्मामृत का पान करते हैं तो कभी ऋषि, मुनियों के दर्शन का लाभ लेते हैं। कभी नंदनवन में क्रीड़ा करते हैं तो कभी सभा में बैठकर देव-देवांगनाओं को संतुष्ट करते हुए मनोविनोद करते हैं। कभी- कभी उन्हें धर्म का उपदेश देते हुए कृतार्थ हो जाते हैं।
प्रश्न 9 - इतने अतुल वैभव को प्राप्त कर क्या उसमें आसक्त हो जाते हैं?
उत्तर - नहीं, भावी तीर्थंकर वे देवेन्द्र इस अतुल वैभव को भोगते हुए भी उसमें आसक्त नहीं होते हैं।
प्रश्न 10 - अच्युतेन्द्र अपनी आयु पूर्ण कर कहाँ जन्मे ?
उत्तर - अच्युतेन्द्र अपनी आयु पूर्ण कर वाराणसी नगरी में महाराजा अश्वसेन के घर जन्मे ।
प्रश्न 11- कमठ का जीव वह नारकी मरकर कहाँ गया?
उत्तर - वह नारकी अपनी नरकायु पूर्ण कर भगवान पार्श्वनाथ की माता वामा देवी का पिता हुआ।
(दशवाँ भव) प्रश्न 1 - तीर्थंकर भगवान के कितने कल्याणक होते हैं?
उत्तर - पाँच कल्याणक ।
प्रश्न 2 - पाँचों कल्याणकों के नाम बताइये?
उत्तर - गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान एवं निर्वाण ये पाँच कल्याणक हैं।
प्रश्न 3 - जैनधर्म के तेईसवें तीर्थंकर कौन हैं?
उत्तर - भगवान पार्श्वनाथ।
प्रश्न 4 - भगवान पार्श्वनाथ के माता-पिता कौन थे?
उत्तर - वाराणसी नरेश महाराजा अश्वसेन एवं महारानी वामादेवी भगवान के माता-पिता थे।
प्रश्न 5 - तीर्थंकर भगवान के गर्भ में आने के कितने माह पूर्व से रत्नवृष्टि प्रारंभ होती है?
उत्तर - छः माह पूर्व से।
प्रश्न 6 - यह रत्नवृष्टि कहाँ होती है?
उत्तर - तीर्थंकर भगवान की माता के आँगन में।
प्रश्न 7 - रत्नवृष्टि कौन करता है और किसकी आज्ञा से करता है?
उत्तर - सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से धनकुबेर रत्नवृष्टि करता है।
प्रश्न 8 - प्रतिदिन कितने करोड़ रत्नों की वर्षा होती है?
उत्तर - साढ़े तीन करोड़ प्रमाण रत्न प्रतिदिन बरसते हैं।
प्रश्न 9 - रत्नवृष्टि के साथ-साथ देवगण और क्या-क्या करते हैं?
उत्तर - पंचाश्वर्यवृष्टि ।
प्रश्न 10-माता वामादेवी ने तीर्थंकर शिशु के गर्भ में आने से पूर्व कितने स्वप्न देखे ?
उत्तर - सोलह स्वप्न।
प्रश्न 11 - वे सोलह स्वप्न कौन से हैं?
उत्तर - (1) ऐरावत हाथी (2) शुभ्र बैल (3) सिंह (4) लक्ष्मी देवी (5) दो फूलमाता (6) उदित होता हुआ सूर्य (7) तारावलि से वेष्ठित पूर्ण चन्द्रमा (8) जल में तैरती हुई मछलियों का युग्म (9) कमल से ढके दो पूर्ण स्वर्ण कलश (10) सरोवर (11) समुद्र (12) सिंहासन (13) देवविमान (14) धरणेन्द्र विमान (15) रत्नों की राशि और (16) निर्धूम अग्नि ये सोलह स्वप्न हैं।
प्रश्न 12- महारानी ने उन स्वप्नों का फल किनसे पूछा?
उत्तर - महाराज अश्वसेन से।
प्रश्न 13 - राजा ने उनका क्या फल बतलाया?
उत्तर - राजा ने कहा कि आपके गर्भ में त्रैलोक्यपति तीर्थंकर का जीव अवतरित हो चुका है, आप जगत्पति पुत्ररत्न को प्राप्त करेंगी।
प्रश्न 14- माता की सेवा के लिए कहाँ से देवियाँ आती हैं?
उत्तर - स्वर्ग से (रुचकपर्वतवासिनी एवं कुलाचलवासिनी देवियाँ)
प्रश्न 15 - भगवान पार्श्वनाथ की गर्भकल्याणक तिथि क्या है?
उत्तर - वैशाख वदी द्वितीया।
प्रश्न 16 - भगवान पार्श्वनाथ किस तिथि में जन्मे ?
उत्तर - पौषवदी ग्यारस को।
प्रश्न 17 - भगवान के जन्म पर क्या विशेष बातें होती हैं?
उत्तर - उसी क्षण सहसा स्वर्ग में बिना बजाए ही घण्टे बजने लगते हैं, ज्योतिर्वासी देवों के यहाँ स्वयं ही सिंहनाद होने लगता है
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नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं, शतेन्द्रं सु पुजै भजै नाय शीशं ।
ReplyDeleteमुनीन्द्रं गणीन्द्रं नमे जोड़ि हाथं, नमो देव देवं सदा पार्श्वनाथं ॥🙏🙏🙏🙏🙏
🕉👍🙏
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