ग्रहलाघवम् अहर्गण का स्वरूप एवं साधन | अहर्गण साधन : सूत्र | अहर्गण | अहर्गण साधनग्रहलाघवं | करणम्मध्यम ग्रह साधन : सूर्य-बुध-शुक्रमध्यम | चन्द्रमा साधन तथा उदाहरण
किसी इष्ट या नियत काल तक का समय, यानी दिनों का समूह, ही अहर्गण कहलाता है। यात्रा, विवाह, उत्सव, और जन्मादि में ग्रह स्पष्ट रहने पर हम सम्यक् फल को कह सकते हैं। ज्योतिषशास्त्र ग्रहाधीन होता है, और ग्रह स्पष्टीकरण के लिए हम सर्वप्रथम अहर्गण का साधन करते हैं।
इस प्रक्रिया में, सिद्धान्त विधि से साधित अहर्गण को "सिद्धान्त अहर्गण" कहा जाता है, तन्त्र विधि के द्वारा साधित अहर्गण को "तन्त्र अहर्गण" और करण तन्त्र के द्वारा साधित अहर्गण को "करण अहर्गण" कहा जाता है। इसमें अहर्गण का मुख्य उद्देश्य ग्रह का साधन करना होता है।
ग्रह का साधन सबसे पहले मध्यम होता है, उसके बाद अनेक प्रक्रियाओं के द्वारा हम ग्रह को स्पष्ट करते हैं। दिनांक या तारीख के अनुरूप अहर्गण के साधन विधियों का विवेचन यहां किया गया है। द्वितीय का नाम मध्यमग्रह साधन है, जिसमें ग्रहों की मध्यमगति का वर्णन किया गया है। मन्दफल और शीघ्रफल की अध्ययन के लिए तीसरी इकाई में ग्रहों की गति के अनुसार मन्दफल और शीघ्र फल का अध्ययन किया गया है।
इसमें भी उनकी गति का ही स्पष्ट वर्णन किया गया है, ग्रहों का मन्दफल शीघ्र फल उनकी गति है। अध्येताओं के अनुसार, 'अह्नां दिवसानां समाहारः अहर्गणः भवति', यानी सृष्ट्यादि से अभीष्ट दिवस पर्यन्त व्यतीत होने वाले दिनों को हम अहर्गण कहते हैं।
गणित भेद से अहर्गण की अनेक विद्या है परंतु ग्रहलाघवम् के अनुसार हम ग्रहों की साधन विधि को समझ सकते हैं, और अहर्गण सहित ग्रहों की साधन विधि भी ग्रन्थ भेद से अलग-अलग आपको मिल सकती है परंतु हम यहां पर ग्रहलाघवम् के अनुसार दिखा ।
धन्यवाद
ReplyDelete"धन्यवाद! ज्योतिष के विषय में पोस्ट पसंद करने के लिए। किसी और जिज्ञासा हो तो पूछें
Deleteअहर्गण का साधन किया बढिया करदिया । लेकिन यहाँ थोडा अशुद्ध दिखाइ दे रहा है । क्योँकि जब ७ से भाग करनेके वाद जो शेष आएगा वो शेष पहलेका हि ठिक है । इसमे १ जोड्ना नहि पडेगा क्योँकि । जो शेष है वह गतवासर है । गत वासर त यहाँ वृहस्पतिवासर हि है । अतः ४ शेष ठिक है । १ जोड्ना न हि आवश्यक है ।
ReplyDelete