मांसाहार: क्या पाप है?
मांसाहार | Is eating non veg a sin? | मांसाहार: Is Consuming Non-Veg Considered a Sin? | मांसाहार: क्या अंशाहार करना पाप है?"
अर्थात जो व्यक्ति मांस का त्याग कर देता है वह सब प्राणियों में आदरणीय सब जीवों का विश्वसनीय और साधु पुरुषों द्वारा सदैव ही सम्मानित होता है।
आप सभी reader का हमारे blog no1helper पर हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है हमारे सनातनी धर्मशास्त्रों में वर्णित आज की प्रस्तुति में हम आपको मांसाहार के बारे में एक छोटी सी जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं
भोजन का महत्व:
भगवान ने इस सुंदर सृष्टि में प्रत्येक जीव के लिए भोजन की व्यवस्था कर रखी है। जहां पशु पक्षियों के लिए जंगल घास दाना पानी पेड़ पौधे इत्यादि रचे हुए हैं वहीं मनुष्यों के लिए भरपूर अन्न साग सब्जी और फल इत्यादि की व्यवस्था भी कर रखी है मनुष्य कर्म करके ही इन सबको प्राप्त कर सकता है 84 लाख योनियों में मनुष्य को श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि उसको अपने आहार व्यवहार बात विचार और सोचने विचारने की शक्ति का ज्ञान होता है जबकि अन्य किसी भी जीव को इतना ज्ञान नहीं होता है कि वह सही और गलत में अंतर समझ सके केवल मनुष्य का जीवन ही कर्मयोग से बंधा हुआ है जबकि अन्य जीव और प्राणियों का जीवन भोग योनि में बंधा हुआ है वे केवल अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार ही यह भोग योनि प्राप्त करते हैं और अपने कर्मों को भोगते रहते हैं मनुष्य अपने बुद्धि विवेक से सही गलत और पाप पुण्य का भेद कर सकता है इस क्रम में उसका आहार भी आता है वैसे तो क्या खाना है और क्या नहीं खाना है यह प्रत्येक मनुष्य का व्यक्तिगत विचार और समझ है:-
त्रिकलागुण और भोजन(भोजन की तीन श्रेणियां):-
परंतु हमारे हिंदू धर्म में हमारे भोजन को तीन प्रकार की श्रेणियों में बांटा गया है:-सात्विक, राजसिक, और तामसिक भोजन जो इस प्रकार से हैं पहला है :-
- सात्विक भोजन
सात्विक भोजन हमारे शरीर को पुष्ट और शुद्ध करने के साथ-साथ मन को शांति प्रदान करने वाला और वायु को बढ़ाने वाला होता है ताजे फल हरी पत्तेदार सब्जियां अनाज ताजा दूध और बादाम इत्यादि सभी सात्विक भोजन की श्रेणी में आते हैं दूसरा है:-
- राजसिक भोजन
राजसिक अथवा राजसी भोजन ज्यादा नमकीन खट्टा और मसालेदार भोजन या यूं कहे कि अत्यधिक स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ को राजसिक भोजन कहा जाता है इस प्रकार का भोजन रोग उत्पन्न करने वाला होता है ज्यादा मसालेदार भोजन चाय कॉफी और तला भुना भोजन राजसिक भोजन की श्रेणी में आता है तीसरा है :-
- तामसिक भोजन
तामसिक भोजन अंडा मास मदिरा इत्यादि के प्रयोग से जो भोजन बनता है वह तामसिक भोजन कहलाता है इस प्रकार के भोजन का अत्यधिक सेवन करने से जड़ता भ्रम और भटकाव महसूस होने लगती है जो शरीर और मन को उदासीन कर देता है और नाना प्रकार के रोगों की उत्पत्ति करता है मांस,मदिरा,तंबाकू,लहसुन और प्यास इत्यादि तामसिक भोजन की श्रेणी में आते हैं। अगर हम तामसिक भोजन के अंतर्गत आने वाले मांसाहार की बात करें तो किसी जीव को मारकर उसके मृत शरीर को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है अथवा उसके भूर्ण या अंडे को भी मांसाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है हर धर्म में अहिंसा को परम धर्म माना गया है।
अहिंसा का सिद्धांत:
लेकिन वह हिंसा जो अत्याचारी से अपनी रक्षा के लिए ना की गई हो उसे सबसे बड़ा अधर्म माना जाता है और मांसाहारी भोजन इसी प्रकार की हिंसा से प्राप्त होता है क्योंकि मास के लिए बेजुबान जानवरों और पशु पक्षी को हिंसा पूर्वक मारा जाता है और काट पीट कर उनको खाया जाता है जो व्यक्ति दूसरों के मास से अपना मास बढ़ाना चाहता है उससे बढ़कर नीच और निर्दय मनुष्य दूसरा कोई नहीं है क्योंकि अपने उदर पूर्ति स्वाद और मांस वृद्धि के लिए किसी दूसरे का मांस खाना बहुत बड़ा अपराध है इस तरह का भोजन हमारे धर्मशास्त्रों में सबसे बड़ा पाप माना जाता है क्योंकि जब कोई मन मनुष्य किसी जीव की हत्या करता है तो उस जीव को अत्यधिक दर्द होता है उसकी आत्मा तड़फ उठती है मृत्यु के बाद उस जीव को तो अपनी वर्तमान जीव योनि से मुक्ति मिल जाती है परंतु उसको मारने वाला मनुष्य पाप का भागी बनकर जन्म जन्मांतर तक भोग योनियों में भटकता रहता है मांस खाने वाले लोग इस प्रकार के कृत्यों को बढ़ावा देते हैं वे किसी जीव की हत्या तो नहीं करते लेकिन जीव हत्या को प्रोत्साहित करने का कार्य करके पाप के भागीदार बनते हैं और पाप का फल भोगते हैं उस परमपिता परमात्मा ने सभी जीवों को अपना-अपना जीवन जीने का अधिकार दिया है उसके द्वारा बनाए गए जीवों पशु पक्षियों अथवा अन्य प्राणियों को मारकर खाने का हमारा अधिकार नहीं है अतः अपनी इस मनुष्य जीवन की यात्रा को सुखमय और शांतिपूर्वक पूर्ण करने के लिए सदैव ही शाकाहार का प्रयोग करना चाहिए अपने जीवन में भक्ति पूर्वक भगवान का ध्यान करते हुए सभी पशु पक्षियों से प्रेम करना चाहिए।
समापन:
जो व्यक्ति मांस का त्याग कर देता है वह सब प्राणियों में आदरणीय सब जीवों का विश्वसनीय और साधु पुरुषों द्वारा सदैव ही सम्मानित होता है और स्वयं भगवान उसका मार्ग प्रशस्त करते हैं तो यह थी मांसाहार के बारे में एक छोटी सी जानकारी हम आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी।
एक बार फिर से आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जय हिंद।
FAQ
प्रश्न: मुझे सात्विक भोजन क्यों करना चाहिए?
उत्तर: सात्विक भोजन से आत्मा को पोषण मिलता है और मानव जीवन में शांति बनी रहती है।
प्रश्न: मांस का त्याग करने के क्या लाभ हैं?
उत्तर: मांस का त्याग करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और आत्मा को शांति मिलती है।
प्रश्न: सनातन धर्म में भोजन को तीन श्रेणियों में कैसे बाँटा गया है?
उत्तर: सनातन धर्म में भोजन को सात्विक, राजसिक, और तामसिक तीन श्रेणियों में बाँटा गया है, जो आत्मिक विकास को प्रभावित करती हैं।
प्रश्न: कैसे आत्मिक विकास में भोजन का योगदान होता है?
उत्तर: भोजन के आत्मिक परिणाम से विकास होता है, जिससे मानव जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होता है।
प्रश्न: धार्मिक दृष्टिकोण से मांसाहार को सही या गलत कैसे माना जा सकता है?
उत्तर: सनातन धर्म के परिप्रेक्ष्य में, मांसाहार को धार्मिक दृष्टिकोण से गलत माना जाता है क्योंकि इसमें हिंसा का अंश होता है।
प्रश्न: सात्विक भोजन के लिए उपयुक्त आहार क्या है?
उत्तर: सात्विक भोजन में ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्जियां, अनाज, ताजा दूध, और बादाम शामिल होते हैं।
प्रश्न: सनातन धर्म में भोजन का आत्मिक परिणाम कैसे निर्धारित होता है?
उत्तर: भोजन का आत्मिक परिणाम सनातन धर्म के तत्वों और धार्मिक आदर्शों के अनुसार निर्धारित होता है।
प्रश्न: सनातन धर्म में भोजन का योगदान कैसे किया जा सकता है?
उत्तर: सनातन धर्म में भोजन को एक साधना के रूप में देखा जा सकता है, जो आत्मिक विकास को प्रोत्साहित करता है।
प्रश्न: धार्मिकता और भोजन के बीच संबंध को समझाएं।
उत्तर: धार्मिकता और भोजन में एक दूसरे से जुड़ाव इस प्रकार होता है कि धार्मिक भोजन आत्मिक उन्नति का साधन करता है।
प्रश्न: सनातन धर्म में भोजन का महत्व कैसे समझा जा सकता है?
उत्तर: सनातन धर्म में भोजन को आत्मिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जो आत्मा के साथ साथ पृथ्वी और सम्पूर्ण सृष्टि के साथ भी संबंधित है।
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