Skip to main content

जानिए पराशर ऋषि के बारे में: कितना जानते है आप?

       दोस्तों ऋषि पराशर जी एक दिव्य और अलौकिक शक्ति से संपन्न ऋषि थे उन्होंने धर्म शास्त्र ज्योतिष वास्तु कला आयुर्वेद नीति शास्त्र विषय का ज्ञान को प्रकट किया उनके द्वारा रचित ग्रंथ वृहत पराशर होरा शास्त्र लघु पाराशरी आश्चर्य धर्मसंहिता वास्तु शास्त्रम् पराशर संहिता अर्थात आयुर्वेद पाराशर महापुराण पराशर नीति शास्त्र आदि मानव मात्र के लिए कल्याणार्थ रचित ग्रंथ जग प्रसिद्ध है जिनकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है।

जानिए पराशर ऋषि के बारे में: कितना जानते है आप?

ऋषि पराशर: एक प्राचीन ऋषि का विस्तृत परिचय


पराशर ऋषि कौन थे?

पराशर ऋषि, वेदांत और ज्योतिष शास्त्र के प्रमुख आचार्यों में से एक थे। उनका जन्म महर्षि वशिष्ठ के पौत्र के रूप में हुआ था, और उन्हें ब्रह्मज्ञान, वेद, और तंत्र शास्त्र का अद्वितीय ज्ञान था।


ऋषि पराशर के जीवन:

पराशर ऋषि का जीवन उनके अद्वितीय योगदान के साथ भरा हुआ था। उन्होंने विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन किया और अपनी विद्या को ब्रह्मा, विष्णु, और महेश्वर की कृपा से प्रदर्शित किया। उन्होंने अपने जीवन के दौरान धर्म, ज्ञान, और नैतिकता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को बोधित किया।


पराशर ऋषि के परिवार:

पराशर ऋषि के पिता का नाम शक्ति मुनि था, जो एक महर्षि और वैद्य थे। उनकी माता का नाम जयंती था। पराशर ऋषि की पत्नी के रूप में निषादराज की कन्या सत्यवती थी, जिनसे उनके पुत्र वेदव्यास जन्मे।


पराशर ऋषि के योगदान:

पराशर ऋषि ने अपनी शिक्षाएँ ऋग्वेद से प्राप्त की और उन्होंने अपनी विद्या को ब्रह्मा, विष्णु, और महेश्वर की कृपा से प्रदर्शित किया। उनके द्वारा रचित ग्रंथ 'बृहत्पाराशरहोराशास्त्र' ज्योतिष के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है और उनका योगदान आज भी ज्योतिष शास्त्र की शिक्षा में महत्वपूर्ण है।


पराशर ऋषि ने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की हैं, जिनमें ज्योतिष, आध्यात्मिकता, और धर्मशास्त्र के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा होती है। ये ग्रंथ उनके ज्ञान, उपदेश, और विचारों का प्रतिष्ठान बढ़ाते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख पराशर ऋषि के ग्रंथों का उल्लेख है:


1. बृहत्पराशरहोराशास्त्र (Brihat Parashara Hora Shastra):

   यह ग्रंथ ज्योतिष शास्त्र पर आधारित है और इसमें ग्रहों, राशियों, भावों, और नक्षत्रों के अध्ययन का विवेचन होता है। यह एक प्रमुख ज्योतिष ग्रंथ है जो ग्रंथकार के नाम पर सामान्यत: 'पराशर होरा' भी कहा जाता है।


2. पराशर संहिता (Parashara Samhita):

   यह ग्रंथ आध्यात्मिक ज्ञान और विचारों को समर्थन करता है। इसमें धर्म, कर्म, और मोक्ष के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है और यह आध्यात्मिक साधना की मार्गदर्शन करता है।


3. विष्णु पुराण (Vishnu Purana):

   ऋषि पराशर ने विष्णु पुराण रचा है, जो विष्णु भगवान के अद्भूत लीलाओं, धर्म, और उनके भक्तों के उपकारों पर आधारित है। यह एक प्रसिद्ध पुराण है जो भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।


4. भागवत पुराण (Bhagavata Purana):

   ऋषि पराशर ने भगवत पुराण भी रचा है, जो कृष्ण भगवान की कथाओं, लीलाओं, और उनके भक्तों की महिमा पर आधारित है। यह भी एक प्रमुख पुराण है जो हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है।


5. राष्ट्रीय धर्म संहिता (Rashtriya Dharma Samhita):

   इस ग्रंथ में ऋषि पराशर ने राष्ट्रीय धर्म एवं समृद्धि के लिए नीति शास्त्र के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की चर्चा की है। इसमें समाज, राजनीति, और आध्यात्मिक जीवन के लिए मार्गदर्शन दिया गया है। ऋषि पराशर ने अपनी उपदेशों के माध्यम से समृद्धि, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए सृष्टि के नियमों का सुझाव दिया है।


पराशर ऋषि की ग्रंथों में धार्मिकता, ज्ञान, और मोक्ष के प्रति उनका समर्पण दृढ़ता से प्रकट होता है। उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से मानव समाज को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और उन्हें धार्मिकता की महत्वपूर्णता समझाई।


ऋषि पराशर की ग्रंथों में उनकी उदार दृष्टि, ज्ञान का आदान-प्रदान, और धर्म के प्रति समर्पण का स्पष्ट अभिव्यक्ति है। इन ग्रंथों के माध्यम से ऋषि पराशर ने समाज को समृद्धि और शांति की प्राप्ति के लिए अनुशासन दिया है और उनकी शिक्षाएं आज भी मानवता को मार्गदर्शन कर रही हैं।


इस तरह, पराशर ऋषि के ग्रंथों ने धार्मिक, सामाजिक, और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मानव समाज को प्रेरित किया है और उनके उपदेशों ने सजीव रूप से लोगों को मार्गदर्शन किया है। इस प्रकार, ऋषि पराशर के योगदान ने भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक विचारधारा में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाए रखा है।


राष्ट्रीय धर्म संहिता

पराशर ऋषि का अन्य एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है 'राष्ट्रीय धर्म संहिता', जिसमें वे युगानुरूप निष्ठा पर बल देने के सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा करते हैं। इसमें उन्होंने समाज और राष्ट्र के लिए उपयुक्त धार्मिक नियमों का उल्लेख किया है।


पराशर ऋषि का आध्यात्मिक योगदान:

पराशर ऋषि का योगदान सिर्फ ज्योतिष शास्त्र तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान में भी बहुत अद्भुत योगदान दिया। उनके द्वारा रचित 'विष्णु पुराण' और 'पराशर संहिता' जैसे ग्रंथ भी आध्यात्मिक सिद्धांतों को समझाने में सहायक हैं।


ऋषि पराशर का वास्तविकता में अवतार:

पराशर ऋषि को भगवान शिव का 26वां अवतार भी माना जाता है। उनके पुत्र वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना की थी और इसलिए उन्हें वेदव्यास कहा जाता है।


सत्यवती और पराशर ऋषि:

पराशर ऋषि का जीवन अद्वितीय घटना के साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने निषादराज की कन्या सत्यवती के साथ एक अद्वितीय समागम किया था, जिससे महाभारत के लेखक वेदव्यास का जन्म हुआ था।


पराशर ऋषि का नेतृत्व:

पराशर ऋषि का नेतृत्व उनके शिक्षाओं और धार्मिक आदर्शों के कारण ही नहीं, बल्कि उनके साहित्यिक योगदान के लिए भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएं आज भी धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन में मार्गदर्शन करती हैं और उनका योगदान सभी धार्मिक समुदायों में महत्वपूर्ण है।


पराशर ऋषि का जीवन एक अद्वितीय दरबार की तरह था, जिसमें वे विद्या, धर्म, और आध्यात्मिकता के सूत्रों को समर्थन करते थे। उनकी अद्भुत रचनाएं हमें आज भी उनके शिक्षाओं का साक्षात्कार करने का अवसर प्रदान करती हैं और हमें धर्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने में सहायक हैं।


 ऋषि पराशर के माता-पिता के बारे में दोस्तों ऋग्वेद के मंत्र दृष्टा और गायत्री मंत्र के महान साधक क्षत्रियों में से एक महर्षि एक महर्षि वशिष्ठ के पौत्र महान वैद्य शुक्राचार्य मृत्युकारक और ब्रह्म ज्ञानी ऋषि पराशर के पिता का नाम शक्ति मुनि और माता का नाम जयंती था ऋषि पराशर व सर्कल और याज्ञवल्क्य के सिथे पराशर मुनि को भगवान शिव का 26वां अवतार भी माना जाता है पराशर ऋषि की पत्नी के बारे में बात करें तो ऋषि पराशर ने निषादराज की कन्या सत्यवती के साथ उसकी कुंवारी अवस्था में समागम किया था जिसके चलते महाभारत के लेखक वेदव्यास का जन्म हुआ सत्यवती ने बाद में राजा शांतनु से विवाह किया था पराशर के उल्लू आदि पुत्र भी थे भविष्य पुराण के अनुसार उग की बहन उन लोगों की के पुत्र बेसिक शाखा का प्रवक्ता कर्नल हुआ दोस्तों महर्षि पराशर के पुत्र हुए ऋषि वेद व्यास जी ने महाभारत की रचना की थी वेदव्यास का नाम कृष्ण बयान था वेदव्यास की माता का नाम सत्यवती था सत्यवती का एक नाम मत्स्यगंधा भी था क्योंकि उनकी अंगों से मछली की गंध आती रहती थी और वह नाव खेने का का हुआ करती थी एक बार जब ऋषि पराशर उनकी नाव में बैठ कर यमुना पार कर रहे थे तब उनके मन में सत्यवती के रूप सौंदर्य को देखकर आ सकती का भाव जागृत हो गया और उन्होंने सत्यवती के समय प्रणय संबंध का निवेदन कर दिया सत्यवती ने यह सुनकर कुछ सोच में पड़ जाती हैं और फिर उनसे कहती हैं कि हे मुनीश्वर आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या अंतर यह संबंध उचित नहीं है तब पाराशर मुनि कहते हैं कि चिंता मत करो क्योंकि संबंध बनाने पर भी तुम्हें अपना को मारे नहीं होना पड़ेगा और प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी यह सुनकर सत्यवती मुनि के निवेदन को स्वीकार कर लेती है ऋषि पराशर अपने योग बल द्वारा चारों ओर घने कोहरे को फैला देते हैं और सत्यवती के साथ प्रमेय करते हैं बाद में ऋषि सत्यवती को आशीर्वाद देते हैं कि उनके शरीर से आने वाली मछली की गंध सुगंध में परिवर्तित हो जायेगी आगे चलकर इसी नदी के द्वीप पर ही सत्यवती को पुत्र की प्राप्ति लोग यही पुत्र आगे चलकर वेदव्यास कहलाते हैं व्यास जी सांवले रंग के थे जिस कारण इन्हें कृष्ण कहां गया तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप पर उनका जन्म हुआ था इसलिए उन्हें व्रत यौन भी कहा गया कालांतर में वेदों का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुए दोस्तों पराशर ऋषि के पिता को राक्षस कल्माषपाद ने खा लिया था जब यह बात ऋषि पराशर को पता चली तो उन्होंने राष्ट्रों के समूल नाश हेतु राक्षस तत्र यज्ञ प्रारंभ किया जिसमें एक के बाद एक रक्षक खींचे चले आकर उसमें भस्म होते गए कई राक्षस स्वाहा होते जा रहे थे ऐसे में महर्षि पुलस्त्य ने पराशर ऋषि के पास पहुंचकर उनसे यह यज्ञ रोकने की प्रार्थना की और उन्होंने उन्हें अहिंसा का उपदेश भी दिया पराशर ऋषि के पुत्र वेदव्यास ने भी पराशर से इस यज्ञ को रोकने की प्रार्थना की उन्होंने समझाया कि बिना किसी दोष के समस्त राक्षसों का संघार करना अनुचित है फिर सत्य कथा व्यास की प्रार्थना और उपदेश के उन्होंने यह रक्षक क्षत्रियों की पूर्ण आहुति देकर इसे रोक दिया दरअसल कथा कुछ इस प्रकार है कि एक दिन की बात है इस शक्ति यह डायन मार्ग द्वारा पूर्व दिशा से आ रहे थे दूसरी ओर पश्चिम से आ रहे थे राजा कल्माषपाद रास्ता इतना संकरा था कि एक ही व्यक्ति निकल सकता था दूसरे का हटना आवश्यकता है लेकिन राजा को अपराध का अहंकार था और शक्ति को अपने ऋषि होने का अहंकार था राजा से रिसीवर बड़ा ही होता है ऐसे में तो राजा को ही हट जाना चाहिए था लेकिन राजा ने हटना तो दूर उन्होंने कोणों से मारना प्रारंभ कर दिया राजा कार्यक्रम राजपूत जैसा था सकती ने राजा को राक्षस होने का श्राप दे दिया सकती के श्राप से राजा कल्माषपाद राक्षस हो गए राक्षस बने राजा ने अपना प्रथम ग्रह सकती को ही बनाया और ऋषि सकती की जीवन लीला समाप्त हो गई दोस्तों ऋषि पराशर की रचनाओं के बारे में बात करें तो ऋषि पराशर ने कई विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर उसे दुनिया को प्रदान किया था ऋग्वेद में ऋषि पराशर की कई रचनाएं हैं विष्णु पुराण पराशर स्मृति विदेहराज जनक को उपदिष्ट गीता अर्थात परासर गीता वृहत पराशर संहिता आदि ऋषि पराशर की रचनाएं हैं दोस्तों प्राचीन ऋषि ने अनेक ग्रंथों की रचना की जिसमें से ज्योतिष के ऊपर लिखे गए उनके ग्रंथ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं प्राचीन और वर्तमान का ज्योतिष शास्त्र पाराशर द्वारा बताया कि नियमों पर ही आधारित है ऋषि पराशर ने ही धारासर होना शास्त्र लघु पाराशरी अर्थात ज्योतिष लिखा है दोस्तों ऋषि पराशर की अन्य रचनाओं के बारे में आपको बताएं तो वृद्धि प्रेस करिए धर्म संहिता व राष्ट्रीय धर्म संहिता इसे स्मृति कहते हैं पराशर संहिता जिसे वैद्य कहते हैं आश्चर्य पुराणम जिनमें माधवाचार्य का उल्लेख किया गया है राष्ट्र विरोधी नीति शास्त्रं जिनमें चाणक्य का उल्लेख किया गया है परास्त रोहित वास्तु शास्त्र में इसमें विश्वकर्मा का उल्लेख किया गया है आदि उन्हीं की रचनाएं पराशर स्मृति एक धर्मसंहिता है जिसमें युगानुरूप निष्ठा पर बल दिया गया है यह था दोस्तों ऋषि पराशर के बारे में जानकारी उम्मीद करते हैं फ्रेंड्स आप सभी को हमारा लेख पसंद आया होगा अगर लेख पसंद आया हो तो लेख को लाइक और शेयर करना ना भूलिएगा और दोस्तों ऐसे ही धर्म और इतिहास से जुड़े है ज्ञान वर्धक लेख देखते रहने के लिए हमारे वेबसाइट no1helper को सब्सक्राइब करना ना भूलिएगा आप हमारे वेबसाइट no1helper को सब्सक्राइब कीजिए और हम आपके लिए ऐसे ही ज्ञान वर्धक लेख लेकर आते रहेंगे फिर मिलते हैं फ्रेंड्स अपने एक नए लेख के साथ तब तक जुड़े रहिए हमारे वेबसाइट no1helper के साथ । धन्यवाद जय हिंद


इन्हें भी देखें।:-



Comments

Popular posts from this blog

श्री शिव रुद्राष्टकम् हिंदी अर्थ सहित || नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित

'वेदः शिवः शिवो वेदः' वेद शिव हैं और शिव वेद हैं अर्थात् शिव वेदस्वरूप हैं। यह भी कहा है कि वेद नारायणका साक्षात् स्वरूप है- 'वेदो नारायणः साक्षात् स्वयम्भूरिति शुश्रुम'। इसके साथ ही वेदको परमात्मप्रभुका निःश्वास कहा गया है। इसीलिये भारतीय संस्कृतिमें वेदकी अनुपम महिमा है। जैसे ईश्वर अनादि-अपौरुषेय हैं, उसी प्रकार वेद भी सनातन जगत्में अनादि-अपौरुषेय माने जाते हैं। इसीलिये वेद-मन्त्रोंके द्वारा शिवजीका पूजन, अभिषेक, यज्ञ और जप आदि किया जाता है। नमामीशमीशान निर्वाणरूपम्।विभुम् व्यापकम् ब्रह्मवेदस्वरूपम्। निजम् निर्गुणम् निर्विकल्पम् निरीहम्।चिदाकाशमाकाशवासम् भजेऽहम् ॥१॥ मोक्षस्वरूप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर और सभी के स्वामी शिवजी, मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ। स्वयं के स्वरूप में स्थित (मायारहित), गुणरहित, भेदरहित, इच्छारहित, चेतन आकाशरूप और आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर, मैं आपकी भक्ति करता हूँ। निराकारमोंकारमूलम् तुरीयम्।गिराज्ञानगोतीतमीशम् गिरीशम्। करालम् महाकालकालम् कृपालम्।गुणागारसंसारपारम् नतोऽहम् ॥२॥ निराकार, ओंका

गोत्र कितने होते हैं: जानिए कितने प्रकार के गोत्र होते हैं और उनके नाम

गोत्र कितने होते हैं: पूरी जानकारी गोत्र का अर्थ और महत्व गोत्र एक ऐसी परंपरा है जो हिंदू धर्म में प्रचलित है। गोत्र एक परिवार को और उसके सदस्यों को भी एक जीवंत संबंध देता है। गोत्र का अर्थ होता है 'गौतम ऋषि की संतान' या 'गौतम ऋषि के वंशज'। गोत्र के माध्यम से, एक परिवार अपने वंशजों के साथ एकता का आभास करता है और उनके बीच सम्बंध को बनाए रखता है। गोत्र कितने प्रकार के होते हैं हिंदू धर्म में कई प्रकार के गोत्र होते हैं। यहां हम आपको कुछ प्रमुख गोत्रों के नाम बता रहे हैं: भारद्वाज वशिष्ठ कश्यप अग्निवंशी गौतम भृगु कौशिक पुलस्त्य आत्रेय अंगिरस जमदग्नि विश्वामित्र गोत्रों के महत्वपूर्ण नाम यहां हम आपको कुछ महत्वपूर्ण गोत्रों के नाम बता रहे हैं: भारद्वाज गोत्र वशिष्ठ गोत्र कश्यप गोत्र अग्निवंशी गोत्र गौतम गोत्र भृगु गोत्र कौशिक गोत्र पुलस्त्य गोत्र आत्रेय गोत्र अंगिरस गोत्र जमदग्नि गोत्र विश्वामित्र गोत्र ब्राह्मण गोत्र लिस्ट यहां हम आपको कुछ ब्राह्मण गोत्रों के नाम बता रहे हैं: भारद्वाज गोत्र वशिष्ठ गोत्र कश्यप गोत्र भृगु गोत्र आत्रेय गोत्र अंगिरस गोत्र कश्यप गोत्र की कुलदेवी

शिव महिम्न स्तोत्रम् | हिन्दी अर्थ सहित

|। श्रीगणेशाय नमः ।| || शिवमहिम्नस्तोत्रम् || 🕉 मंगलाचरण 🌼🙏 वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुम वन्दे जगत कारणम् वन्दे पन्नग भूषणं मृगधरं वन्दे पशूनाम पतिं । वन्दे सूर्य शशांक वहनि नयनं वन्दे मुकुन्दप्रियम् वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शंकरम ॥ ॥ अथ शिवमहिम्नः स्तोत्रं ॥ पुष्पदंत उवाच महिम्नः पारन्ते परमविदुषो यद्यसदृशी। स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः॥ अथावाच्यः सर्वः स्वमतिपरिमाणावधि गृणन्। ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः॥1॥ अर्थ:-  हे हर ! (सभी दुःखों के हरनेवाले) आपकी महिमा के अन्त को जाननेवाले मुझ अज्ञानी से की गई स्तुति यदि आपकी महिमा के अनुकूल न हो, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्योंकि ब्रह्मा आदि भी आपकी महिमा के अन्त को नहीं जानते हैं। अतः उनकी स्तुति भी आपके योग्य नहीं है। "स वाग् यथा तस्य गुणान् गृणीते' के अनुसार यथामति मेरी स्तुति  उचित ही है। क्योंकि "पतन्त्यात्मसमं पतत्रिणः" इस न्याय से मेरी स्तुति आरम्भ करना क्षम्य हो ।॥ १ ॥ अतीतः पन्थानं तव च महिमा वाङ्मनसयो:। रतदव्यावृत्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि।। स कस्य स्तोतव्यः कतिविधिगु